भरगामा (अररिया), जासं: फैशन की अंधी दौड़ में धुनियों के धुनकी की आवाज धीमी पड़ती जा रही है। कारखानों में बनने वाले कंबल व रूई धुनने वाली मशीनों ने तोसक, रजाई आदि तैयार करने वाले धुनियां समुदाय के पारंपरिक व्यवसाय को खासा प्रभावित किया है। धुनिया परिवारों की कलाकारी भी समाप्त होने लगी है। वहीं, इस रोजगार के गहराते आर्थिक संकट से निजात दिलाने को लेकर प्रशासनिक स्तर से कोई प्रयास नहीं हो रहा।
देशी रूई की अनुपलब्धता अहम कारण:
तोसक, रजाई आदि तैयार करने में माहिर समुदाय के मो. ईनूस बताते हैं कि एक समय था जब देशी रुई सहजता से उपलब्ध होता था, इसके लिए व्यापक स्तर पर सेमल की खेती भी क्षेत्र में की जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे गद्दा व मशीन द्वारा तैयार किया सिंथेटिक रुई फैशन बन गयी। इस फैशन ने धुनिया समुदाय के पूरे व्यवसाय को हीं प्रभावित कर दिया।
रोजगार छिनने से आर्थिक संकट की स्थिति:
व्यवसाय से जुड़े लोग बताते हैं कि गद्दे के साथ-साथ सिंथेटिक रूई के अस्तित्व में आने के बाद न केवल इनका व्यवसाय छिन गया है बल्कि आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खासबात यह है कि हाशिये पर पहुंची इनकी दशा को सुधार को लेकर प्रशासनिक स्तर पर कोई भी प्रयास अबतक नहीं किया जा रहा है। प्रशासन द्वारा देशी रूई को पुन: अस्तित्व में लाने हेतु सेमल की खेती के लिए किसानों के प्रोत्साहित करना या समुदाय के लिए रोजगार के विकल्प का उपाय भी शून्य हैं।
व्यवसाय के बाद अब स्वास्थ्य भी प्रभावित:
केवल भरगामा में धुनियां समुदाय की संख्या बारह हजार से उपर की है जो रोजगार छिन जाने से प्रभावित हैं। चिकित्सा प्रभारी भरगामा डा. सुखी राउत बताते हैं कि सिंथेटिक रूई का प्रयोग स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अहम समस्या है। गद्दे के साथ सिंथेटिक रूई के लगातार प्रयोग से हड्डी संबंधी रोग, ब्लड प्रेशर, हर्ट डीजीज तथा अनिंद्रा रोग की संभावना काफी बढ़ जाती है। उन्होंने सिंथेटिक रूई के नित प्रयोग से चर्मरोग जैसी बीमारियों के बढ़ने की बात भी कही है।
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