भरगामा (अररिया): प्रखंड में लीवर व पेट संबंधी बीमारियों में लगातार इजाफा हो रहा है। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. सुखी राउत का कहना है कि खेती में कीटनाशी दवाओं के बढ़ते प्रयोग के कारण लोग जहरीला पदार्थ खाने को विवश हैं और पेट संबंधी सारी बीमारियों की जड़ इंस्ेक्टीसाइट युक्त पदार्थ ही हैं।
कथित हरित क्रांति के बाद से किसानों द्वारा अधिक उपज के लिए अत्यधिक मात्रा में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। जानकारों की मानें तो कीटनाशी दवाओं का अंश फूड चेन के तहत लोगों की आंत में भी प्रवेश कर जाता है और लोग सीधे तौर पर 'जहर' सेवन करने पर मजबूर हो जाते हैं। जनता की सेहत पर खतरनाक प्रभाव डाल रहे इन रसायनों ने कितनों को ही काल के गाल में समा लिया है।
इस संबंध में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. सुखी रावत का कहना है कि अत्यधिक उपज हेतु सब्जी व अनाज में कीटनाशक समेत अन्य दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है। इससे किडनी, लीवर, केंशर, चर्मरोग आदि अनेकों बीमारी से लोग ग्रसित हो रहे हैं।
विदित हो कि प्रखंड के वीरनगर विसहरिया गांव में बड़ी संख्या में लोग लीवर की खराबी से ग्रस्त हैं। यहां एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हेपेटाइटिस बी नामक बीमारी से हो चुकी है। अब भी इस रोग का प्रकोप जारी है। वहीं, प्रखंड के ही सिरसिया कलां गांव के ब्राह्माण टोला व रहमान टोला में कैंसर की बीमारी से एक दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है। कई लोग पीड़ित भी बताये जाते हैं। वहीं, डायरिया, कैदस्त, आंत्रशोथ जैसी बीमारियां प्रखंड वासियों को अक्सर अपनी चपेट में ले लेती हैं।
प्रखंड क्षेत्र के बुद्धिजीवी अशोक कुमार दास, पूर्व जिप सदस्य सत्यनारायण यादव, अजय भारती अकेला, चन्द्र मौलेश्वर सिंह आदि का कहना है कि किसान अधिक उपज हेतु धान, गेहूं, मक्का, दलहन में मसूर, मूंग, अरहर, चना, तेलहन में सरसों, गंगराय, सूर्यमुखी आदि फसलों में अत्यधिक मात्रा में अमोनियम, सल्फेट, जिंक, युरिया व पोटाश जैसी रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी घट रही है तथा इसके सेवन से प्रतिदिन लोग भयंकर बीमारियों की चपेट में आकर काल के गाल में समा रहे हैं।
वहीं प्रखंड क्षेत्र की दुकानों में कीटनाशी व रासायनिक उर्वरकों की बिक्री लगातार बढ़ती ही जा रही है।
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