Tuesday, January 3, 2012

शिक्षा: सरकारी प्रयास जगा रहे उम्मीद की किरण


अररिया : रेणु की धरती पर बदलाव की बयार बह रही है। शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी व निजी प्रयासों के बाद उम्मीद की रोशनी साफ नजर आती है। यह बात अलग है कि भ्रष्टाचार की हवा उम्मीद के दीये को थोड़ी बाधित जरूर कर रही है, लेकिन वर्ष 2012 में निरक्षरता के विरुद्ध निर्णायक जंग होने की भरपूर संभावना है।
तकरीबन तीस लाख की आबादी वाले अररिया जिले की आधी आबादी अब भी अक्षर ज्ञान से वंचित है। खासकर महिलाओं के बीच निरक्षरता का अंधकार अब भी घना है। आधी से अधिक महिलाएं लिखना पढ़ना नहीं जानती। लेकिन साक्षर भारत मिशन के तहत उन्हें अक्षर ज्ञान कराने की महत्वपूर्ण परियोजना पर अमल हो चुका है।
साक्षर भारत मिशन के मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रो. बासुकी नाथ झा ने बताया कि अभियान की कार्ययोजना पर अमल शुरू हो चुका है। इसके तहत 15 से 35 आयुवर्ग के निरक्षरों को साक्षर बनाया जायेगा। उन्होंने बताया कि अभियान में महादलित व वंचित टोलों पर खास नजर रखी जा रही है।
इधर, सर्व शिक्षा अभियान अंतर्गत भी स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चों को स्कूल तक लाने के व्यापक प्रबंध किये गये हैं। वहीं, डीईओ राजीव रंजन प्रसाद ने बताया कि नये साल में 296 नये प्राथमिक स्कूल खोल जा रहे हैं तथा 61 प्राइमरी स्कूलों को मध्य विद्यालय के रूप में उत्क्रमित किया जा रहा है।
जिले में मुख्यमंत्री पोशाक योजना व साइकिल योजना के लागू होने से शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मक असर देखा जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में साइकिल सवार बच्चियों को स्कूल जाता देखना एक सुखद अनुभव है।
वहीं, मध्याह्न भोजन योजना जैसे कार्यक्रम का सकारात्मक असर भी देखा जा रहा है। यह बात अलग है कि एमडीएम योजना भ्रष्टाचार के कारण उम्मीद पर खरी नहीं उतरी है, पर इससे इंकार नहीं कि कमजोर वर्ग के लोग इस योजना के कारण ही बच्चों को स्कूल भेजने लगे हैं। खास कर महादलित टोलों के लिए यह योजना लाभकारी रही है।
लेकिन शिक्षा क्षेत्र में उम्मीद के चिराग के तले भ्रष्टाचार का अंधेरा भी बेहद घना है। घपले घोटाले की आंच शिक्षालयों को भी अपवित्र करती रही है। सर्व शिक्षा अभियान में हुए व्यय की महालेखाकार के दल द्वारा की गयी आडिट के बाद 14.63 करोड़ की वित्तीय अनियमितता उजागर हुई । वहीं, स्कूल भवन बनाने के मामले में भी भ्रष्टाचार की आंच कार्यक्रम को जलाती रही। तकनीकी पर्यवेक्षकों व एसएसए के कनीय अभियंताओं की आपसी प्रतिद्वंद्विता के कारण सौ से अधिक स्कूलों का निर्माण अधूरा पड़ा है। वहीं,जिले में दस कस्तूरबा विद्यालय भवन भी अधूरे हैं। काम पूरा करने संबंधी जिला प्रशासन के निर्देश भी बेअसर साबित हुए हैं।
जिले में इस साल लगभग डेढ़ हजार प्रशिक्षित शिक्षकों के नियोजन होने हैं तथा शिक्षक पात्रता परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को भी नियोजन का पुरस्कार मिलना है। कुल मिला कर शिक्षा क्षेत्र से उम्मीद की रोशनी जरूर दिख रही है। इसका जिले के समाज पर व्यापक असर पड़ेगा।

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