जोकीहाट (अररिया) : जोकीहाट प्रखंड वासी बाढ़ आगलगी नदी कटान जैसे आपदाओं से लगातार संघर्ष करने को विवश हैं। इन आपदाओं में सबसे दुखद स्थिति नदी कटान से प्रभावित गांवों की है जिसमें लगभग एक दर्जन गांवों को नेस्तनाबूत करने पर आमदा होकर अपनी विकराल बाहे फैलायें खड़ी है। नदी के इन विकराल बांहों में जाने को विवश लगभग एक दर्जन बस्तियां सिसकियां ले रही है। शायद इस मशीनी युग में मानवीय संवेदना मर चुकी है। सरकार आज तक कटान प्रभावित गांवों में शामिल मझुवा, रमरै, मटियारी, डकैता, बलुवा, सतबीटा, रहड़िया, फर्साडांगी आदि के सैकड़ों विस्थापित भूमिहीन परिवारों के लिए कोई भी ठोस कदम नही उठाई है और न ही कटान रोकने के लिए कोई उपाय कर रही है। अब तो कटान पीड़ितों को यकीन हो गया है कि उनके आंसूओं की कदर न तो प्रशासन और नही राजनीतिज्ञों को है। कभी समृद्धशाली रहे तारण पंचायत का मझुवा गांव बकरा नदी के कटान से अपनी सूरत गंवा चुका है। 15 वर्षो में बकरा नदी ने कटान का ऐसा तांडव मचाया कि लगभग दो सौ परिवार गांव छोड़कर विस्थापित हो गये। तारण पंचायत की मुखिया आशिया प्रवीन ने बताया कि कटान पीड़ितों में मझुवा गांव के खुर्शीद आलम (सरपंच पति) फटकन, सलीम, गुलजार, इलियास आदि के कृषि योग्य जमीन नदी में समा गये। कटान पीड़ित फटकन एवं गुलजार ने पूछने पर बताया, हे बाबू! बकरा हमरा सनी के बर्बाद कै देलकी। हमरा सिनी के दिन बीती गैली लेकिन बच्चा सीनी किरन के दिन बितैती? मुखिया श्रीमती परवीन ने बताया कि मात्र पांच सौ फीट अगर चिरान कर दिया जाय तो गांव को उजड़ने से बचाया जा सकता है। इस सिलसिले में उन्होंने बताया कई बार जिला प्रशासन को लिखित आवेदन दिया लेकिन अबतक कोई प्रभाव नही पड़ा। कटान से प्राथमिक विद्यालय मझुवा, पैक्स गोदाम, जामा मस्जिद आदि नदी के गर्भ में अबतक समा चुका है। प्रखंड के डकैता, मटियारी, बलुवा, रहड़िया, सतबीटा, रमरै आदि गांवों में भी ग्रामीण किसान मजदूरों की हालात जर्जर हो चुके है। इन गांवों के सैकड़ों लोग अपने मासूम बच्चों के साथ दिल्ली, पंजाब की ओर मुखातिब हो गये है। जो गांव में है उन्हें परिवार का गुजारा करना भी कठिन लग रहा है। बीडीओ मो. सिकंदर ने बताया कि लगभग 50 कटान पीड़ितों को मझुवा गांव में पिछले वर्ष 10-10 हजार की राशि दी गई है। बीडीओ ने कहा कटान पीड़ितों के संबंध में सूचनाएं जिला प्रशासन को दे दी गई है। ग्रामीणों का कहना है कि दस-दस हजार रुपैये कटान पीड़ितों के लिए उंट के मुंह में जीरा साबित हुआ। प्रखंड के बुद्धिजीवियों एवं सिविल सोसायटी के लोगों का कहना है कि मनरेगा जैसे योजना की राशि के माध्यम से गांव के किनारे तटबंध एवं उसपर वृक्षारोपण कर कटान को रोककर गांवों की खोई खुशहाली को लौटायी जा सकती है। आज भी इन गांवों में नदी के किनारे हजारों लोग अपनी झोपड़ी बनाकर इसलिए बसे हैं क्योंकि उन्हें आशा है कि सरकार एक न एक दिन जरूर गांव की हिफाजत के लिए तटबंध बनायेगी।
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