अररिया : अररिया जिले में सबको स्वास्थ्य सेवा की तमाम सरकारी घोषणा के बावजूद जिले के गांवों में आम जन के स्वास्थ्य पर अब भी नीम हकीमों का ही कब्जा है। किसी गांव में मोटर साइकिल की डिक्की में सैलाइन लादे, आला व प्रेसर मशीन लिए कई क्वैक सड़क पर मिल जायेंगे। '.. भैया, कॉल पर जा रहे हैं।' लेकिन, क्या पता यह कॉल कितनों के लिए काल बनकर आ जाता है। पानी घट गया तो इनमें से कुछ लोग चापाकल का पानी भी चढ़ा देते हैं।
जानकारों की मानें तो इस जिले में पांच सौ से अधिक क्वैक कार्यरत हैं। इनमें से कुछ तो इतने ढीठ हैं कि बाकायदा अपना बोर्ड लगाकर मोटी फीस लेने के बाद ही मरीजों को देखते हैं। वहीं, ग्रामीण इलाके में दवा की दुकान चलाने वाले कई लोग भी खुलेआम क्वैक का धंधा चला रहे हैं।
हालांकि जानकार मानते हैं कि ग्रामीण अस्पतालों की दुर्दशा क्वैक डाक्टरों के पनपने का प्रमुख कारण है। जिले के अधिकांश ग्रामीण अस्पताल नाकारा बने हुए हैं। इनमें न तो कोई चिकित्सक जाता है और न ही कोई स्वास्थ्यकर्मी। ग्रामीण बताते हैं कि पल्स पोलियो के दिन को छोड़कर स्वास्थ्य कर्मियों के दर्शन संयोग से ही होते हैं। कुर्साकाटा मार्ग पर प्रखंड मुख्यालय से छह सात किमी पहले अवस्थित है सोनापुर स्वास्थ्य उपकेंद्र। सड़क किनारे होने के बावजूद इस अस्पताल की छत पर पटुआ सुखाया जाता है तथा कैंपस में मवेशी बंधे रहते हैं। दर्जनों ग्रामीण अस्पताल 'लापता' हैं। ये केवल कागजों में ही हैं। गीतवास जिले का एक प्रमुख बाजार है। यहां एक एडिशनल पीएचसी है। लेकिन वर्षो से इसका ताला नहीं खुला। तारावाड़ी स्थित एडिशनल पीएचसी, खमगड़ा स्थित स्वास्थ्य उपकेंद्र, रामपुर के स्वास्थ्य उपकेंद्र सहित सौ से अधिक अस्पताल केवल कागजों में ही चलते हैं। प्रशासन द्वारा क्वैकरी पर नियंत्रण के उपाय अब तक नहीं दिखे।
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