अररिया : मानसून की दस्तक के साथ नदियों की गोद में बसे अररिया जिलवासियों की नींद उड़ने लगी है। कटाव, बाढ़, खेतों में सिल्टिंग व प्रशासन की उपेक्षा के कारण जिले में मानसून का आगमन खुशी कम पीड़ा अधिक लाता है। इस बार के हालात भी पुराने जैसे ही हैं।
इस जिले में एक दर्जन बड़ी तथा दो दर्जन छोटी नदियां हैं, जो मानसून की बौछारों के साथ उफनाने लगती हैं। इनमें परमान, बकरा, कनकई, रतवा, नूना, लोहंदरा आदि प्रमुख हैं। मानसून का आगमन इन नदियों के किनारे बसे गांवों में हर साल तबाही का संदेश लेकर आता है। बकरा और परमान कटाव के मामले में कुख्यात है। इन दोनों नदियों ने अब तक पचास गांवों में कटाव का तांडव मचाया है। परमान के किनारे बसे फारबिसगंज प्रखंड के घोड़ाघाट, रमई, अम्हारा, चिकनी, फकरिना, कौआचार, महिसाकोल, गुरमी, खवासपुर, कमता, बलियाडीह, खमकोल, बांसबाड़ी, बसंतपुर सहित जिले के दो दर्जन गांव इस नदी के अभिशाप से हर साल पीड़ित होते हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से उनकी तकलीफ को दूर करने का कोई उपाय नहीं हो रहा है। परमान तटबंधों की मरम्मत अब तक नहीं की गयी है। लिहाजा, बाढ़ आने की स्थिति में इस साल भी जिले के ये गांव पीड़ा झेलने को विवश होंगे। इसी तरह बकरा की तबाही का दंश सिकटी, अररिया, पलासी व जोकीहाट प्रखंडों में चरम पर रहता है। इस नदी ने विगत पांच वर्षो में आधा दर्जन पक्का स्कूल भवन तथा दो हजार से अधिक घरों को लील लिया है। विडंबना है कि कटाव पीड़ित परिवारों को पुनर्वास के लिए पक्के इंदिरा आवास देने के स्पष्ट प्रावधान के बावजूद उन्हें अब तक यह सहायता नहीं मिली है। जोकीहाट प्रखंड के रामराय, मझुआ, तारण, सतबिट्टा, रहरिया आदि गांवों में बकरा नदी ने सैकड़ों परिवारों को गृहविहीन बना दिया है। ये परिवार नदी के प्रकोप से बार-बार उजड़ कर बसने को विवश हैं।
सर्वाधिक चिंता की यह बात है कि प्रशासन नदी तट पर बसे लोगों की सुरक्षा के लिए अब तक कोई ठोस नीति या पहल नहीं कर पाया है। बाढ़ से जंग के नाम पर लाखों रुपये खर्च किए गए हैं और शायद इस बार भी खर्च किए जायेंगे, लेकिन जब तक कटाव को रोकने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनायी जायेगी तब तक जिलावासियों की पीड़ा कम नहीं होगी।
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