Wednesday, February 15, 2012

गहरी है आधी आबादी का दर्द


अररिया : जुबैदा शहर के आजाद नगर में रहती है। पंद्रह साल पहले उसके शरीर पर घर का बीम गिर गया था। उसकी जान तो ऊपर वालों ने बचा दी, लेकिन इलाज के अभाव में वह तबसे बिस्तर पर ही पड़ी है। पेट पालने के लिए वह छोटे बच्चों को उर्दू पढ़ा रही है। यह दर्द अकेली जुबैदा की नहीं है। यहां की ढेर सारी महिलाएं कई प्रकार से शोषित हो रही हैं।
दहेज प्रताड़ना, हत्या व शारीरिक शोषण की दास्तान के बीच अररिया की महिलाओं का दर्द बेहद गहरा है। फारबिसगंज की रेड लाइट एरिया से दो दर्जन से अधिक नाबालिग व युवा महिलाओं के एसपी शिवदीप लांडे के नेतृत्व में पुलिस रेस्क्यू प्रकरण से भी यह बात साबित होती है कि यहां की महिलाएं शारीरिक शोषण की चक्की में पिस रही हैं। इतना ही नहीं वे सामाजिक व प्रशासनिक उपेक्षा की भी शिकार हैं।
फारबिसगंज रेड लाइट एरिया की आमना खातून ने बताया कि सरकार अगर उनकी आर्थिक मदद के लिए आगे आए तो वे इस गंदे काम को छोड़ कर नरक से तौबा कर लें। आमना की मानें तो उन्हें आज तक न तो इंदिरा आवास मिला और न ही कोई अन्य सरकारी सुविधाएं। वे कहती हैं कि उत्थान की बात सब करते हैं, लेकिन आगे कोई आता नहीं है।
कमी जागरूकता की भी है। इसी बस्ती की बीबी फातिमा का कहना था कि लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने व शिक्षा के प्रसार की जरूरत है। इसके लिए धरातल पर काम होना चाहिये।
इस बस्ती की कई बच्चियों को कस्तूरबा स्कूल में नामांकित करवाया गया है। वे वहां पढ़ रही हैं। लेकिन बीच-बीच में उनके गायब होने या ड्राप आउट कर जाने की बात भी सामने आती रही है। ऐसे में सवाल यह है कि वहां से ये बच्चियां घर कैसे वापस आ जाती हैं? अगर छुट्टी लेकर आती हैं तो ऐन मेला के वक्त स्कूल प्रशासन उन्हें छुट्टी कैसे दे देती है?
इन सबसे अलग नारी प्रताड़ना के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो जानकारी भयावह है। विगत पांच साल में तकरीबन ढाई सौ महिलाएं दुष्कर्म की शिकार बनी। इसी अवधि में सौ से अधिक दहेज हत्या के मामले दर्ज किए गए। साधारण मारपीट और दु‌र्व्यवहार की बात ही छोड़ दीजिए। इनकी तो कोई शिकायत भी नहीं होती।
वहीं, न्यायालय में विवाह विच्छेद, तलाक, गुजारा भत्ता व प्रताड़ना की शिकायतें भरी पड़ी हैं। दैहिक शोषण के पश्चात गर्भवती हो जाना व उसकी सार्वजनिक पंचायती इस जिले में एक रिवाज बन चुकी है। हवस का भूत सिर चढ़ कर बोल रहा है। ऐसे कई मामले हैं जिस में युवती का शारीरिक शोषण कर उसे बेसहारा छोड़ दिया गया है। गैयारी की बिन ब्याही मां सइदा (काल्पनिक नाम) व सदर अस्पताल में एक बिन ब्याही विक्षिप्त महिला द्वारा बच्ची को जन्म देने का उदाहरण इस बात का जीता जागता सबूत है कि यहां का पुरुष प्रधान समाज महिलाओं के प्रति संवेदन शील नहीं है।
इन सबसे परे बात प्रशासनिक उपेक्षा की भी है। आखिर यहां की आधी से अधिक महिलाएं निरक्षर क्यों हैं? आजादी से अब तक किस बात की और कहां पर चूक हुई कि महिलाएं शिक्षा की दौड़ में पिछड़ गयी? सवाल कई हैं, लेकिन मुख्यमंत्री साइकिल योजना पर सवार स्कूल जाती बालिकाओं की उड़ान देखकर मुस्तकबिल के लिए उम्मीद की एक किरण जरूर बंधती है।

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