अररिया : कुरबानी, अल्लाह को प्यारी है कुरबानी ..। अल्लाह को नहीं पहुंचता आपके द्वारा की गई जानवरों का गोश्त और न ही उसका खून। लेकिन पहुंचता है तो सिर्फ कुरबानी करने वालों का तकवा और अदब, सिर्फ जानवरों को जिबह कर उसका गोश्त खाना ही कुरबानी का मकसद नही है। बल्कि खुशदिली एवं जोशे मोहब्बत के साथ एक कीमती व नफीस चीज उसकी इजाजत से, उसके नाम पर कुरबान की। दरअसल कुरबानी से लोग में जाहिर करते हैं कि हम खुद भी तेरी राह में हमेशा इस तरह से कुरबान होने को तैयार है। वैसे यही वह तकवा है। यही परहेजगारी है। जिसकी बदौलत खुदा का आशिक अपने महबूब को तकीकी खुशनीदी हासिल कर सकता है।
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