अररिया : अपराध नियंत्रण की दिशा में सीमावर्ती अररिया जिले की पुलिस भले हीं सजग हो तथा अदालती फरमान के तहत अपराध कर्मियों की गिरफ्तारी बढ़ती जा रही हो। इसके बावजूद जिले के कई थानों एवं ओपी की स्थिति में सुधार नहीं हो पाया है। आज भी कई थानों एवं ओपी को अपना भवन नहीं है और जहां हैं उनमें से अधिकतर जर्जर व खस्ताहाल बने हैं। आधुनिक सुविधाओं से वंचित इन स्थानों को देख फरियादियों के मन में कई सवाल उठते हैं। जिस कारण पुलिस सक्रियता के बाद भी अपराधियों को कोई मनोवैज्ञानिक प्रभाव नही पड़ता। वहीं दूसरे की सुरक्षा करने वाले खुद असुरक्षित है।
जिले के सीमावर्ती ओपी की तो स्थिति और बुरी है। कुर्साकांटा प्रखंड के सोना मनी गोदाम थाना अपने उद्घाटन काल से हीं भाड़े के मकान में चल रहा है, वहीं जोकीहाट के महलगांव तथा अररिया के बैरगाछी ओपी सामुदायिक भवन में चल रहा है। साथ हीं नगर परिषद क्षेत्र अररिया के पुराने बाजार आर.एस.का आउट पोस्ट भी वर्षो से भाड़े की मकान में है। यही स्थिति फुलकाहा ओपी की है जो भाड़े के एक टीन के मकान में संचालित है। इसी तरह की कमावेश स्थिति बथनाहा, घुटना व बसमतिया ओपी का भी है।
इस इलेक्ट्रोनिक युग में जहां भारत-नेपाल खुली सीमा जिले को संवेदनशील बनाये हुये हैं वहीं कहीं ओपी को अपना घर नहीं तो कई ओपी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अपना काम निपटा रहा है। सोनामनी गोदाम जैसे आउट पोस्ट पहुंचने को लेकर लोगों को कई दिन पूर्व तैयारी के बाद भी पापड़ बेलने पड़ते हैं।
संवेदनशील इस जिले में पुलिस को सुविधा संपन्न होना तो दूर पुलिस के दायित्व का बोध दिलानेवाला स्थान स्वयं सुविधा विहीन है। साथ हीं इस स्थानों पर रहने वाले पुलिस अधिकारी भी भाड़े का मकान का प्राय: सहारा लेने को मजबूर है।
जिले में कुल 24 पुलिस थाना व ओपी हैं। परंतु वाहन, फोन, भवन व पुलिस बल की कमी इस क्षेत्र के लिये चुनौती पूर्ण है।
कई थानों में केस दर्ज कराने आये फरियादी को सादा कागज व कार्बन साथ लेकर जाना होता है। कई आउट पोस्ट चाहरदीवारी विहीन अपने को स्वयं असुरक्षित है। इन बातों के बावजूद जिले की पुलिस व पुलिस बल अपने को कितना निश्चिंत व शांत महसूस करते होंगे-यह सोचनीय है। उधर सीमा पार की भारत विरोधी गतिविधियां की चर्चा आम रहती है। जिसके लिये सीमावर्ती इस जिले की पुलिस को संसाधनों से मुस्तैद होने की जरूरत है। लेकिन कई परेशानियों से जूझ रहे यहां के पुलिस की कार्य क्षमता प्रभावित होना स्वाभाविक है तो अदालती फरमान को भी सर्वोपरि मानना उनकी बाध्यता कहलाती है। इससे फरियादों की बोझ भी बढ़ने लगता है।
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