Saturday, January 1, 2011
काली मेला खो रहा अपना गौरवपूर्ण इतिहास
फारबिसगंज (अररिया) : फारबिसगंज का ऐतिहासिक काली पूजा मेला वकत के पेशे तथा प्रशासनिक उदासीनता के बलिवेदी पर चढ़ अपना गौरवशाली इतिहास खोने के कगार पर है। सोनपुर मेला की तर्ज पर सीमाचल में अपनी पहचान बनाने वाला यह मेला असुरक्षा की भावना तथा आधुनिकता की मार ने काफी हद तक प्रभावित किया है। प्रत्येक वर्ष काली पूजा के अवसर पर अक्टूबर माह में लगने वाला उक्त ऐतिहासिक मेला आज अपने अस्तित्व को बचाने में लगा हुआ है। कहते हैं नब्बे के दशक तक मेला लगने के साथ ही सीमाचल के अररिया जिला, किशनगंज, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार समेत पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से बड़ी संख्या में लोग फुरसत के क्षण निकाल कर विशेषकर मेले का आनंद उठाने आते थे। दर्शकों की भीड़ से पुरा मेला परिसर खचाखच भड़ा रहता था वहीं एक से बढ़कर एक नाच, तमाशे वाले, विभिन्न कंपनियों के स्टाल, मीना बाजार, बम्बई बाजार, खान-पान की दुकानें सहित पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए वृहत पैमाने पर पशु मेला भी लगता था जिसमें बिहार प्रदेश के अलावे कई अन्य प्रदेशों से उंट, हाथी, घोड़ा, भेड़, बकरी, गाय, भैस आदि के विभिन्न नशलों की खरीद बिक्री आकर्षण को केन्द्र था वहीं व्यापारी का लाभ तथा सरकारी खाजाने में भी राजस्व प्राप्त होता था। किंतु नब्वे के दशक के बाद मेले में बढ़ी आपराधिक घटना तथा प्रशासनिक बेरूखी ने मेला के प्रति लोगों का आकर्षण को कम करती चली गयी। वहीं दुराज से आने वाले दुकानदारों, खेल-तमाशे वालों तथा स्थानीय दुकानदारों का मोह धीरे-धीरे भंग करती चली गई। आज आलम यह है कि यह मेला नाम मात्र का रह गया है। अश्लील थियेटर, जुआघर, होजी, बीडीओ हाल तक यह सिमट कर रह गया है। शाम ढलते ही मेले से खासकर महिलाओं को आना सुरक्षित नहीं माना जाता है। वहीं शराब व्यवसाय का भी यह मेला अच्छा ठिकाना बन गया है। इक्के-दुक्के दुकानदार खेल तमाशें वाले भय के माहौल में मेला में अपनी दुकानें सजाते है। प्रशासनिक स्तर पर भी ढिला, ढाल सुरक्षा व्यवसाय मेले की रही खई कसर भी पुरा कर देता है। मेला के लगते ही चोरी, छिनतई की घटनाओं में खासी वृद्धि हो जाती है। बड़ी पशु मेला की भी स्थिति जर्जर हो चुकी दिखती है। ऐसे में अपनी गौरवमयी इतिहास को बचा पाने में यह मेला कितनी सार्थक हो सकती है। यह सोचनीय मुद्दा है बावजूद इसके पिछले कुछ वर्षो से स्थानीय लोग मेले की दशा और दिशा सुधारने में जुटे हैं किंतु प्रशासन अब इस ओर कोई ध्यान नहीं दे पा रही है। कारणवश सरकार को राजस्व क्षति तथा आम लोगों के लिए मनोरंजन का यह केन्द्र धुंधला हो रहा है।
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