Saturday, January 1, 2011

फटेहाल जिंदगी जी रहे खानाबदोश

रानीगंज(अररिया) : स्थायी जीवन चाहता हूं पर नहीं मिल रही सरकारी मदद। यह कहना है रानीगंज पहुंचे खानाबदोशो टोली के सदस्यों का जो हाल में जगह जगह घूम घूमकर जीवन बिताने के बाद इस कंपकपाती ठंड में रानीगंज हसनपुर गांव के निकट मदरसा परिसर में तंबू लगाकर फटेहाली का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों की खोज कर प्लास्टिक व छतरी देकर झुग्गी बनाकर रह रहे खानाबदोशों के परिवार में छोटे बड़े दर्जनों सदस्य राहगीरों को देख रहे है। खास बात कि ये सभी लोग मांग कर खाने वालों में से नहीं है। बल्कि घूम घूम कर कुछ काम कर शिकार कर एवं कुछ जड़ी बुटी आदि बेचकर जीविकोपार्जन करते है।
दूसरों के जीवन में बनावटी फुल एवं कई असाध्य रोगों को दूर करने की औषधि बेचने वाले इन खानाबदोशों का जीवन आर्थिक निर्बलता के कारण बदरंग है। रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं और भरपेट भोजन तक नसीब नहीं होने की बात कहते है ये घुमक्कड़ टोली के सदस्य। महिला सदस्या कहती है कि इन लोगों का पीढ़ी दर पीढ़ी इस प्रकार का जीवन घूम घूम कर व्यतीत करती है। ये सभी कहती है कि कुछ दिनों के अंतराल के बाद ये लोग शहर बदल देते है। खानाबदोशों की टोली में शामिना, लालिमा सिंह, मीना सिंह, शांति देवी, मालीन आदि बताते है ये घुमक्कड़ होना इनका स्वभाव नहीं मजबूरी है। ये लोग भी अन्य लोगों की भांति स्थायी जीवन गुजारना चाहती है। अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती है परंतु उन्हें न अपना स्थायी कोई घर है न जमीन है न ठिकाना बस चलते ही जाना है। ये हसरत भरी निगाह से बताते है कि उन्हें भी कोई सरकारी मदद मिले तो वे भी अपना स्थायी घर बना सके। कोई रोजगार कायम कर सके और अपने बच्चों को भी तालिम दे सके। खानाबदोश टोली में नंग धडंग बच्चे इस ठंड में भी फटेहाली जिंदगी बरस कर रहे है। दिन के समय पुरूष तो घूम घूम कर तैयार जड़ी बुटी या अन्य काम करते है परंतु महिला सदस्य एवं बच्चे समय व्यतीत करने में लगे है। कंपकपाती ठंड, हल्की वर्षा व हवा के झोंके भी इनके आशियाना बर्दास्त नहीं कर पाते है। आवश्यकता है मानवीय संवेदना को जागृत कर इन खानाबदोशों की बेतरकीब जिंदगी को संवारने की।

0 comments:

Post a Comment