अररिया : पहली जनवरी सामने है, लेकिन सिमट रहे वनों व सौंदर्य खो रही नदियों ने जिले में पिकनिक स्पाटों का अकाल पैदा कर दिया है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरे वनों की अंधाधुंध कटाई ने हालात और खराब कर दिये हैं।
साल की शुरूआत खुशी, सुभोजन व मस्ती के साथ। फंडा भले ही यूरोपियन हो, पर अररिया जैसे जिले में भी नये साल की मस्ती ने अपना स्थान पक्का बना लिया। इस खुशी में सब शरीक होते हैं तथा अच्छे भोजन के साथ साल की शुरूआत होती है।
प्याज की आसमान पहुंच चुकी कीमत तथा मीट मुर्गा व खाने पीने के अन्य सामग्रियों की महंगाई ने तो नव वर्ष के मूड को मद्धिम किया ही है, दिक्कत अब इस बात की है कि लोग पिकनिक मनाने जायें तो कहां?
जानकारों के मुताबिक एक दो दशक पहले तक इस जिले के युवा पहली जनवरी को पिकनिक मनाने के लिये हिमालय की सुरम्य वादियों में नेपाल के धरान, चतरा, भेड़ेटाड़ व धनकुटा आदि के अलावा बंगाल के पांजीपाड़ा, पानीगड़ा तथा भीमनगर स्थित कोसी बैराज पर जाते थे। लेकिन नेपाल में राजनीतिक बदलाव के बाद आयी अस्थिरता व भारतीय पर्यटकों में असुरक्षा की भावना के बाद यहां के युवाओं ने सीमापार के पिकनिक स्पाटों की ओर जाना छोड़ दिया है। असुरक्षा की बात बंगाल स्थित पिकनिक स्थलों के साथ भी जुड़ी बतायी जा रही है। लेकिन सबसे बड़ा अंतर जिले के जंगलों व नदी तट स्थित कुदरती पिकनिक स्पाटों के घटने से आया है।
कुसियारगांव, रहिकपुर, माणिकपुूर, हड़ियाबारा, बथनाहा, करियात जैसे फेमस जंगल समाप्त हो कर उजड़ गये। वहीं, परमान, बकरा, रतवा व अन्य नदियों के तट पर भी पिकनिक मनाना निरापद नहीं रहा। अररिया में तो नदी का किनारा ही शहर से दूर चला गया है। वहीं, प्रशासन की ओर से पिकनिक जैसी बातों के लिये कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। न ही प्रशासन द्वारा जिले में किसी पिकनिक स्पाट का ही विकास किया गया है।
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