Saturday, January 1, 2011

कार्यपालिका की सुस्ती से बढ़ रहे लंबित मामले

अररिया : सीमावर्ती अररिया जिला के अधिकतर लोग गरीबी व तंगहाली के शिकार है, जो अपनी कई परेशानियों के कारण अदालत का दरवाजा खटखटाते रहे है। परंतु कार्यपालिका की सुस्त गति के कारण जहां लंबित मामले में लगातार इजाफा हो रहा है, वहीं न्यायार्थी न्याय के लिये तड़प रहे हैं।
विधि के जानकारों के अनुसार अगर तमाम व्यावहारिक दिक्कतों के बाद भी बुनियादी मामलों के अगर कार्यपालिका का ईमानदारी पूर्ण प्रशासनिक सहयोग मिले तो लोगों को सस्ता एवं शुलभ न्याय मिलेगा। परंतु एक ओर अररिया में अब भी न्यायाधीश की कमी, अदालत से जारी सम्मन की तामिला में देरी, आरोपियों की उपस्थिति में हो रहे बिलंब, अदालती प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी आरोपियों को हाजिर कराने में आनेवाली अड़चनें लंबित मामले निष्पादन में बाधा है।
सबसे बड़ी समस्या आपराधिक मामलों में सम्मन व वारंट का है, जिसकी तामिला की जिम्मेदारी पुलिस-प्रशासन की तत्परता पर निर्भर है। परंतु समय पर इन आदेशों का तामिला नहीं हो पाता और इस बीच अदालतों में तारीख-दर-तारीख पड़ते हैं, जिससे अदालत का कार्य बाधित रहता है।
उधर जिले में पुलिस के उपर अपराध पर काबू पाने की जिम्मेदारी के कारण इस ओर तत्परता का अभाव होता है। अदालत में लंबित मामलों के बढ़ते बोझ का कारक है तो यह मुद्दा बड़ा है।
अररिया की अदालत में हाल में दिये गये निर्णयों पर गौर किया जाय तो त्वरित न्याय दिलाने की कड़े परते उजागर होती दिखती है। न्यायार्थियों के चप्पलें घिस जाते है तथा घर के बीट्टे बेच दिये जाते हैं, बावजूद काफी देरी से उन्हें मिले इंसाफ का मूल कारण साक्ष्यों की उपस्थिति सामने आते रही है।
समान न्याय व्यवस्था के इस देश में आम नागरिक अब भी इससे कतिपय कारणों से वंचित है तथा धरातल पर सरकारी घोषणाओं की हवा निकलती दिखती अपने पक्ष में करने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे है तो गरीब लोग विपन्नतावष न्याय पाने के लिये कचहरी का चक्कर काटने को विवश है। एक ओर जिले में आपराधिक मामलों के बढ़ने का मुख्य कारण तस्करी एवं घोटालेवाजी रहा है तो भू-विवाद भी आपराधिक मामले के पीछे मूल वजह कहा जाता है। परंतु कुर्साकांटा समेत कई अंचलों में नामांतरण मामले के निष्पादन में दूलमूल रवैया स्वामित्व के गलत व्योरे के कारण जमीन बिकने, भू-विवाद में मामले के निष्पादन की प्रक्रिया लंबी होने आदि है। अररिया में वर्तमान में एकमात्र ए.डी.जे प्रथम समेत छ: फास्ट ट्रैक कोर्ट है। जमानत अर्जी की सुनवाई ए.डी.जे. कोर्ट में होती है परंतु जमानत अर्जी सुनवाई के दौरान मांगी गयी केश डायरी समय पर उपलब्ध नहीं होते, जिस कारण सुनवाई टलती रही है। तो अदालत को डी.जी.पी. बिहार तक सख्त रूख दिखाते पत्र जारी किया जा रहा है।
अदालत में कई ऐसे मामले है, जिसमें अपराधियों के विरुद्ध गवाह अपनी गवाही देने का साहस नही कर पात। उधर मामले का मुख्य गवाह जहां 'होस्टाईल' होते रहे है, वहीं अनुसंधानकर्ता कई मामलों में हाजिर नहीं होते। पुलिस थाने में दर्ज रपटो का सरकार की ओर से नियुक्त अभियोग पक्ष पैरवी करते हैं, परंतु मामले दर्ज के मुकावले सरकार कितने वाद जीतते रही है?

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