अररिया: .इस्स! आप तो बिल्कुल छोकरबाजी नाच के मनुवां नटुआ जैसी लगती हैं। फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध रचना तीसरी कसम में नर्तकी हीरा बाई को संबोधित हीरामन का यह संवाद शायद आपको याद हो। हीरामन को अगर आम आदमी का प्रतिनिधि मानें तो तीसरी कसम का यह संवाद आज भी अररिया के गांवों का कड़ुवा सच है। मनोरंजन के नाम पर अररिया के गांव बाजारों में सुविधा विहीन सिनेमा हाल, झोपड़ी में चलने वाले वीडियो तथा फूहड़ हास्य वाले ग्रामीण लौंडा नाचों का ही सहारा है।
अररिया में मल्टीप्लेक्स की बात शायद अभी बेमानी है। तीन चौथाई से अधिक जिलेवासी इस अंग्रेजी शब्द से अपरिचित ही होंगे। मनोरंजन के साधन के रूप में उनका उपयोग अभी दूर की बात है। वहीं, खेल प्रतिभा के मामले में धनी रहने के बावजूद अररिया का खेल परिदृश्य पूरी तरह अस्त
व्यस्त प्रतीत होता है।
मनोरंजन के नाम पर बिल्कुल भोड़ी व्यवस्था। फारबिसगंज व अररिया को छोड़ कहीं भी स्थायी सिनेमा हाल नहीं। पलासी, जोकीहाट,कलियागंज,रानीगंज जोगबनी आदि बाजारों में सिनेमा हाल हैं, लेकिन उनमें दर्शकों के लिये सुविधाएं नगण्य हैं। सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं, दर्शक भेड़ बकरी की तरह ठूंस दिये जाते हैं।
ग्रामीण मेलों में चले जाइये तो टूरिंग टाकीज के नाम पर सी ग्रेड की फिल्में व ब्लू फिल्में दिखाने वाले हाल खुलेआम मिलेंगे, कोई रोकने वाला नहीं। इस बात से किसे मतलब है कि इन फिल्मों से युवा पीढ़ी पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता है।
शहरी मध्यम वर्ग व नौकरी पेशा लोग अपने मनोरंजन के लिये पूरी तरह टेलीविजन व डीवीडी आदि की गिरफ्त में हैं। टेलीविजन के बढ़ते प्रभाव ने प्रबुद्ध वर्ग को अपने घरों के अंदर सिमटे रहने को विवश कर दिया है। इस कारण फूहड़ मनोरंजन के नाम पर हो रहे गोरखधंधे पर समाज का नैतिक हस्तक्षेप भी समाप्तप्राय: है।
भारतीय क्षेत्र में रेडियो स्टेशन मुश्किल से मिलेंगे, लेकिन सीमापार नेपाल में एफएम रेडियो चैनलों की भरमार है। इनसे डंके की चोट पर अपसंस्कृति परोसी जा रही है। कोई अंकुश नहीं।
जिले में पर्यटन महत्व के स्थलों पर गौर करें तो लगभग सौ ऐसे स्थान हैं जो ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के हैं। लेकिन प्रशासन की उपेक्षा व राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी के कारण वे सदियों से अविकसित ही पड़े हैं। ऐसे स्थलों में सुंदरी मठ, मदनपुर, बसैठी, चंडीपुर, वीरवन, भेंड़ियारी, फारबिसगंज, अररिया आदि प्रमुख हैं।
लेकिन सरकारी तंत्र की उपेक्षा के अंधेरे में उम्मीद की किरण भी दिख रही है। विगत एक वर्ष में जिले में वृक्ष वाटिका व जैविक उद्यान जैसी अवधारणाएं मूर्त रूप लेती नजर आयी। तत्कालीन वन मंत्री रामजी ऋषिदेव की पहल पर जिले के रानीगंज में करोड़ों की लागत से वृक्ष वाटिका निर्माण पर कार्य की गति तेज हुई। वहीं, इंडियन बर्ड कंजर्वेशन संस्था के प्रदेश समन्वयकव मंदार नेचर क्लब के अरविंद मिश्रा ने जिले का दौरा कर रानीगंज में पक्षी आश्रयिणी निर्माण की संभावनाएं तलाशी। उन्होंने अररिया जिले के पक्षी जीवन को पर्यटन परिदृश्य से जोड़ने पर बल दिया।
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