Wednesday, December 29, 2010

नारी सशक्तीकरण: बहुत कुछ बदला है मैला आंचल में

अररिया : जहां 75 फीसदी लड़कियां 18 साल की उम्र से पहले ब्याह दी जाती हों, जहां की सत्तर प्रतिशत महिलाएं अक्षरों को ही नहीं पहचानती हों, प्रति दिन कोई न कोई नव विवाहिता दहेज के नाम पर प्रताड़ित होती हो .., वहां नारी सशक्तीकरण की बात शायद बेमानी लगे, लेकिन विगत एक साल में फणीश्वरनाथ रेणु के मैला आंचल की धरती में बहुत कुछ बदला है। सरकार की पहल ने एक नयी राह दिखायी है। अब अररिया की लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं। इतना ही नहीं, यहां की महिलाओं में जिजिविषा भी अद्भुत है। लड़कों की तुलना में यहां महिला शिशु मृत्यु दर कम है।
यहां के सामाजिक परिदृश्य पर गौर करें तो नारी सशक्तीकरण की दिशा में बाधाएं बहुत हैं। शायद बहुत कुछ किया जाना भी शेष है, लेकिन आधी आबादी के लिये विकास यात्रा शुरूहो चुकी है।
नारी सशक्तीकरण के मामले में अररिया के अतीत का टै्रक रिकार्ड गौरवशाली रहा है। जिले में कई जातीय समूह ऐसे हैं, जहां की पारिवारिक सत्ता मातृ प्रधान रही है। जानकर शायद आश्चर्य हो कि कुल्हैया (मुस्लिम), राजवंशी कोच आदि जातियों में लड़कियों को आज भी बेहद महत्व दिया जाता है। इन जातियों में शादी के लिये वार्ता की शुरूआत लड़के वालों की ओर से की जाती है। वहीं स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि यहां लड़की शिशुओं की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में कम है, यानी उनमें जिजिविषा अधिक है। लेकिन जानकारों की राय में नेतृत्व की कमजोरी व उपेक्षा के कारण यहां की आधी आबादी लगातार पिछड़ती गयी है। विकास के अंग्रेजी पैटर्न से समाज ने खामियां तो ले ली, लेकिन शिक्षा, समता व जागरूकता जैसी खूबियों को छोड़ दिया।
हालांकि विगत पांच सालों में महिला आरक्षण की सीढ़ी चढ़ कर कई महिलाएं आगे आई हैं, लेकिन बीते साल पर गौर करें तो राच्य सरकार की साइकिल योजना, पोशाक योजना आदि के नतीजे अब सामने नजर आने लगे हैं। सुदूर गांवों में लड़कियों का समूह एकरंग पोशाक में साइकिल चढ़ कर स्कूल जाता दिख रहा है।
लेकिन महिलाओं की आर्थिक उन्नति अभी भी प्रशासनिक जड़ता का शिकार है। आधी आबादी के विकास को ले केवल कागजी घोड़ों की दौड़ करवायी जाती है। बीते साल में महिला समूहों के आर्थिक स्वावलंबन के लिये 365 समूहों के वित्त पोषण का लक्ष्य रखा गया, लेकिन प्रशासन इनमें से एक चौथाई समूहों को भी परिक्रामी निधि नहीं दिलवा पाया।
इसमें संदेह नहीं, कि पंचायतों में महिला आरक्षण के माध्यम से महिलाओं की सामाजिक सक्रियता बढ़ी है। पर शिक्षा व जागरूकता की कमी के कारण वे अब भी पिछड़ी हैं। प्रदेश शक्तिरूपा की सचिव व अररिया जिला परिषद की अध्यक्ष शगुफ्ता अजीम मानती हैं कि यहां लड़कियों की शिक्षा में कमी उनके विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। उन्हें शिक्षित कर ही उनके विकास के बारे में सोचा जा सकता है।

0 comments:

Post a Comment