Monday, December 27, 2010

फारबिसगंज: चचरी पुल बने गांवों की पहचान


रेणुग्राम (अररिया) : पुल-पुलिया की जगह बांस की चचरी ही फारबिसगंज प्रखंड के पूर्वी क्षेत्र की पहचान रह गई है। आजादी के दशकों बाद भी इस क्षेत्र का ऐसा पिछड़ापन विकास के दावों की पोल खोल रहा है। जबकि फारबिसगंज प्रखंड क्षेत्र की अधिकांश आबादी पूर्वी क्षेत्र में ही निवास करती है। फारबिसगंज प्रखंड क्षेत्र की चचरी पर झूलते हुए जब कोई मोटर साइकिल निकलती है तो दृश्य तो रोमांचक होता है किंतु मोटर साइकिल सवार की जान पर आफत बनी रहती है। क्योंकि जरा सी चूक हुई कि नीचे नदी या गड्ढे में गिर कर वे गहराई में चले जायेंगे। नदी की बात छोड़िए यहां मुख्य सड़कों पर भी चचरी के सहारे ही यातायात हो पाता है। अम्हारा से कमता, वलियाडीह जाने वाली सड़क का भी यही हाल है। वधमारा गांव जाने में भी एक ही सड़क पर कई चचरी से गुजरना पड़ता है। अस्तित्व विहिन इन सड़कों पर आधा दर्जन से अधिक जगहों पर बांस निर्मित चचरी ही आवागमन के मुख्य साधन है। स्थिति ऐसी है कि अगर एक भी चचरी कुछ गड़बड़ रही तो हजारों लोगों का आना जाना दुर्लभ बन जाता है।

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