Monday, December 27, 2010

आपदा के लिए जिले में ठोस रणनीति नहीं

अररिया : आपदा प्रबंधन को सुदृढ़ कर प्रतिवर्ष होने वाले व्यापक क्षति को कम किया जा सकता है। लेकिन हर साल आपदा से करोड़ों के नुकसान के बावजूद उसे कम करने के लिये कोई ठोस रणनीति अब तक नहीं बनायी गयी है। इतना ही नही ये जिला भूकंप के मामले में अति संवेदनशील है। क्योंकि ये भूकंप के खतरनाक जोन फोर में आता है। जिले में होने वाले क्षति को कम करने के लिए व्यापक रूप से जागरूकता अभियान जरूरी है। लेकिन अफसोस की बात है कि आपदा से होनेवाली क्षति को कम करने के लिए कोई ठोस रणनीति नही है। इसी का नतीजा है कि ये जिला प्रतिवर्ष आग, बाढ़, सुखाड़ और चक्रवाती तूफान से जूझता रहता है। आग की घटना में प्रत्येक वर्ष हजारों घर जल जाते है, जबतक दमकल पहुंचते है तबतक पूरा बस्ती राख की ढेर मे तब्दील हो जाता है। क्योंकि गरीबी के कारण यहां घास-फूस का मकान बनाकर किसी तरह जीवन बसर करते है। पिछले वर्ष जिले में भयानक चक्रवती तूफान आया था जिसमें चालीस लोगों की जान गई थी अधिकांश की मौत घर में दबकर हुई थी। कहीं भी गांव में इंदिरा आवास का आतापता नही था। आपदा से पूरी तरह निबटने के लिए जरूरी है कि आपदा से पूर्व, आपदा के समय, आपदा के बाद तीनों परिस्थितियों की जानकारी होनी चाहिये। आपदा प्रबंधन विभाग की भी जवाबदेही समय रहते इन तीनों मुद्दे पर लोगों को जागरूक करें। लेकिन अफसोस की बात है कि जिला प्रशासन प्रत्येक वर्ष आपदा से निबटने के लिए खानापूर्ति के तौर पर जिला मुख्यालय पदाधिकारियों की बैठक कर अपनी पीठ जरूर थपथपा देते हैं। आपदा के समय प्राथमिक उपचार की व्यवस्था महत्वपूर्ण होती है और आपदा के बाद नुकसान आकलन कर राहत और पूनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित की जाय। दिलचस्प बात यह है कि आपदा के क्षेत्र में काम करनेवाले जिला आपदा प्रबंधन परियोजना पदाधिकारी पिछले एक वर्ष से नही है और कार्यालय में ताला बंद है। हालांकि प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नही जा सकता है लेकिन जानकारी प्राप्त कर इससे होने वाली क्षति को जरूर कम किया जा सकता है। इस दिशा में भी प्रशासन पूरी तरह विफल साबित हो रहा है।

0 comments:

Post a Comment