अररिया : बांग्लादेश की ओर पशु तस्करी का सिलसिला बंद नहीं हुआ है। यह लगातार जारी है। लेकिन यहां के किसान अब एक नई समस्या से रूबरू हैं। यह है पशु चारे की तस्करी। इन दिनों मवेशी पालकों के लिए चारे का जुगाड़ करना एक बड़ी समस्या बन गयी है। वहीं, इसका सीधा प्रभाव दूध के उत्पादन व उसकी कीमत पर पड़ रहा है। दूध के दाम लगातार बढ़ रहे हैं।
अररिया जिले के गांवों से पशु चारे की तस्करी जोरों पर है। चारे के तस्कर यहां से बड़े पैमाने पर गेहूं की भूसी व धान का नार (लेरुआ) खरीद कर उसे ट्रक पर लोड करते हैं तथा सीधे बंगाल की ओर लेकर चले जाते हैं। कहीं कोई रोक टोक नहीं। फोर लेन हाइवे के निकट आप चारे की खुलेआम लोडिंग होता देख सकते हैं। इन चारा तस्करों की पहुंच जिले के गांवों तक है और भूसी व लेरुआ का पैसा देकर ये किसानों से उनका चारा खरीद लेते हैं और उसे ट्रक या ट्रैक्टर पर लाद कर ले आते हैं।
सूत्रों की मानें तो इस चारे को बांग्लादेश की सीमा के निकट बसे गांवों में स्टाक किया जाता है जहां से मौका ताड़ कर उसे बांग्लादेश की ओर टपा दिया जाता है।
विदित हो कि बांग्लादेश व बंगाल के कई इलाकों में जल जमाव के कारण पशु व पशु चारे की किल्लत हमेशा बनी रहती है। चारा तस्कर इसी परिस्थिति का फायदा उठा रहे हैं।
जानकारों की मानें तो इस इला के से ले जाया जाने वाला चारा मुर्शिदाबाद से उत्तर सिलीगुड़ी के आसपास तक बांग्लादेश से लगने वाली सीमा पर बसे गांवों में स्टाक होता है। तस्करों को इस धंधे में भारी मुनाफा होता है।
इधर, चारे की तस्करी के कारण यहां के गांवों में अब भूसी व लेरुआ की घोर किल्लत हो गयी है। कई पशु पालकों ने चारे की किल्लत के कारण अपने पशु बेच डाले। विडंबना है कि ये बेचे गये मवेशी भी पशु तस्करों के हाथ ही लग जाते हैं। गैयारी के पशुपालक सर्वेश्वर यादव, कोकाई यादव, पुण्यानंद सिंह व मुनी लाल ठाकुर, रामपुर के अरुण यादव , केशव यादव, दिनेश यादव, दिलीप सिंह, रमेश यादव, रमानंद यादव आदि ने बताया कि पशु चारे की किल्लत के कारण वे अपना मवेशी बेचने पर विवश हो रहे हैं। छोटे व कम पूंजी वाले किसानों व मजदूरों के लिए पहले मवेशी पालन एक बड़ा सहारा था, लेकिन तस्करी के कारण चारे की बढ़ी कीमत की वजह से वे अपना मवेशी बेच चुके हैं।
किसानों ने बताया कि जो लेरुआ पहले सोढ़ी के हिसाब से और जो भूसी पहले भक्कू के रेट से बिकता था वह अब साढ़े तीन रुपया किलो की दर से तौल कर बिकता है। मवेशी पालें तो कैसे? सूत्रों की मानें तो चारा तस्कर इतने सक्रिय हैं कि उन्होंने सरकारी कृषि फार्म में उत्पादित गेहूं की भूसी भी खरीद ली।
वहीं, अररिया शहर में डेयरी चलाने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि गेहूं की भूसी एचएफ, फ्रिजियन, जरसी, साहीवाल आदि नस्ल की गायों के लिए स्वस्थ व नीरोग पशु आहार होती है, लेकिन भूसी मिलती ही नहीं, हम करें तो क्या? धान का लेरुआ खिला रहे हैं, वह भी बेहद मंहगे रेट में मिल रहा है।
चारे की किल्लत का असर दूध के उत्पादन व उसकी कीमत पर भी पड़ा है। विगत पांच साल में दूध के दाम दो गुना तक बढ़ गये हैं।
इधर, किसानों के सामने आ रही इस समस्या की बाबत पूछे जाने पर अररिया के एसडीओ डा. विनोद कुमार ने बताया कि इस संबंध में अभी तक किसानों व मवेशी पालकों की ओर से कोई शिकायत सामने नहीं आयी है। लेकिन वे अपने स्तर से मामले की जांच कर उचित कार्रवाई करेंगे।