अररिया), निसं: अररिया को कचहरिया टाउन कहते हैं। जिस दिन कचहरी बंद रही शहर में लोगों की संख्या बेहद कम हो जाती है। मेला संस्कृति से उपजी यह मानसिकता सदियों पुरानी है।
कमोबेश संपूर्ण जिले का यही चरित्र है। लोग अपने निवास के लिए अभी भी गांवों को ही प्राथमिकता देते हैं। लिहाजा यहां शहरीकरण की रफ्तार बेहद धीमी रही है। टाउन शिप के विकास की बात अपनी जगह है। यहां तो चर्चा इस पर होती है कि अररिया शहर है शहर नहीं।
आंकड़ों के मुताबिक जिले की तकरीबन 94 प्रतिशत आबादी गांवों में ही रहती है। शहरों में वे ही लोग रह रहते आये हैं, जिन्हें या तो अपने व्यापार, बच्चों की पढ़ाई या फिर रोजगार या नौकरी के सिलसिले में शहर में आवास बनाना जरूरी है।
हालांकि विगत दो दशक के दौरान बाजारीकरण व आधुनिकता कीतेज होती दौड़ में लोगों की जीवन शैली बदली है और इसका प्रभाव यहां भी पड़ा है। अब शहरों के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। लोगों में यह धारणा आम होने ली है कि आगे बढ़ना है तो शहर की ओर चलो।
एक बड़ी जन संख्या अब ग्रामीण परिवेश को छोड़कर शहर की रूख कर रही है। शहर में मकान होना स्टेटस सिंबल बनने लगा है। लेकिन शहर के सुनियोजत विकास की योजनाएं देखने को नही आ रही।
अररिया में टाउनशिप डेवलपमेंट की योजना पर सरकारी अव्यवस्था का ग्रहण लगा हुआ है। अररिया, फारबिसगंज व जोगबनी जैसे शहरों का ग्रोथ पूरी तरह अनियंत्रित है। कहीं कोई प्लानिंग नहीं। अररिया जैसे शहर में जल निकासी को ले नाले बने। लेकिन बगैर मास्टर प्लान के बने इन नालों से पानी की निकासी नहीं होती। यह बात अलग है कि इनके निर्माण के नाम पर करोड़ों के बारे न्यारे हो गये।
सबसे बढ़कर पूरे शहर में घूम जाइये आपको नागरिक सुविधाओं का घोर अकाल नजर आयेगा। शहरों के लोग सार्वजनिक शौचालय जैसी सुविधा से भी वंचित हैं।
अररिया शहर के जनसंख्या आंकड़ों पर गौर करें तो दो दशक के अंदर ग्रामीण परिवेश को छोड़कर पचास हजार से अधिक लोग यहां आकर बसे हैं। आबादी बढ़ने के साथ लोगों की जीवन शैली में भी बदलाव आया है। इस बीच सरकारी स्तर से विकास की बयार भी तेज हुई लेकिन अररिया में शहरीकरण कोई सुंदर स्वरूप नहीं ले पाया है।
टाउनशिप योजना के तहत बिहार के 38 जिलों में 28 जिले को स्वीकृति मिली। लेकिन इनमें से अररिया को योजनाएं नही मिल पायी हैं। सरकारी नियमों के अनुसार टाउनशिप योजना के लिए किसी भी नगर निगम, नगर परिषद या फिर नगर पंचायत में एक लाख की आबादी को पहली शर्त माना गया है। अररिया में एक नगर परिषद एवं दो नगर पंचायत है। लेकिन तीनों क्षेत्रों में ताजा जनगणना के मुताबिक एक लाख से कम की आबादी ही रहती है।
वर्ष 2001 के जनगणना के अनुसार नगर परिषद अररिया की आबादी 60268, फारबिसगंज नगर पंचायत की 42 हजार एवं जोगबनी नगर पंचायत की आबादी 29 हजार थी। अररिया के जनसंख्या वृद्धि दर का आकलन एवं आप्रवासियों की संख्या का सही आकलन किया जाय तो केवल अररिया नगर परिषद की जनसंख्या ही 1.25 लाख से अधिक होगी। लेकिन वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक अररिया नप क्षेत्र की आबादी 80 हजार के करीब ही पहुंची है। वहीं फारबिसगंज नगर की आबादी 10 वर्षो में 15 हजार तथा जोगबनी नगर पंचायत की आबादी में 17 हजार की वृद्धि हुई है।
इस संबंध में नप अध्यक्ष अफसाना प्रवीण का कहना है कि वार्डो में जनगणना व मतदाता आदि के आकलन के लिए लगे लोगों ने शहरी क्षेत्र में ठीक ढंग से काम नही किया। इसी का खमियाजा शहर के लोग भुगत रहे हैं। स्वीकृति के बावजूद अररिया के लोग टाउनशिप योजना से वंचित रह गये हैं।
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