अररिया : परती परिकथा में वर्णित बालूचर व रेत के टीले अब सोने का टुकड़ा बन रहे हैं। यह बात अलग है कि इस 'सोना' पर रियल इस्टेट डेवलपर्स की नजर गड़ गयी है। जिले से गुजरने वाली एनएच के दोनों किनारों पर जमीन के दाम 'राकेट गति' से भाग रहे हैं। वहीं, मात्र पांच वर्षो में सरकारी राजस्व में भी तकरीबन साढ़े चार गुना इजाफा हुआ है। यह बात अलग है कि इसका फायदा किसानों को नहीं मिल रहा है।
ईस्ट वेस्ट कारीडोर के तहत इस जिले में बनी एन एच 57 फोर लेन सड़क के दोनों तरफ धनबली लोगों का समूह जमीन की खरीद में अंधाधुंध निवेश कर रहा है।
इन लोगों में कई राजनेता, छोटे बड़े संवेदक, नौकरशाह, व्यवसायी आदि शामिल हैं।
पूरी प्रक्रिया का एक पहलू यह है कि कुछ साल पहले जब फोरलेन के लिए जमीन का अधिग्रहण हो रहा था, तो किसानों का उसका मुआवजा कौड़ी में मिला। लेकिन सड़क के रास्ते आने वाली विकास की आहट पाकर धनबली समुदाय ने पैसे के जोर पर जमीन हथियानी शुरू कर दी। रियल इस्टेट डेवलपर्स भी पहुच गये और आज हालत यह है कि उसी जमीन की कीमत सोने से भी ज्यादा हो गयी है। जमीन के असल मालिक यानी किसान इस फायदे से वंचित हो रहे हैं।
जानकारों की मानें तो अकेले फारबिसगंज शहर के आसपास जमीन खरीद में एक अरब से अधिक का निवेश हुआ है। इस शहर के अगल बगल कम से कम दो बिल्डर हाउसिंग कालोनी डेवलप करने में लगे भी हुए हैं। इधर, अररिया शहर के आसपास भी बीस किमी की परिधि में फोरलेन व स्टेट हाइवे के दोनों तरफ जमीन बिक चुकी है। स्पष्ट है कि जमीन लेने वालों की नजर भविष्य पर है।
जमीन की खरीद बिक्री के आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ पता चलता है कि विगत पांच साल में डीड प्रेजेंटेशन में जहां सात हजार की बढ़ोतरी हुई है, वहीं जमीन की बढ़ती कीमत के कारण निबंधन व मुद्रांक शुल्क में लगभग साढ़े चार गुना का इजाफा हुआ है। वहीं, चालू वर्ष की पहली तिमाही में यह आंकड़ा आठ करोड़ पार कर गय है।
बहरहाल, पूरे परिदृश्य में प्रशासन शिथिल ही नजर आता है। भू माफिया अपने स्वार्थ के लिए सक्रिय हैं तथा किसान जमीन गंवा रहे हैं।
विगत पांच वर्ष में अररिया में जमीन की खरीद बिक्री व प्राप्त राजस्व का आंकड़ा:
वर्ष संख्या आय
करोड़ में
2006-07 25211 7.09
2007-08 26220 8.85
2008-07 27117 9.84
2009-10 30454 15.99
2010-11 32108 19.51