Tuesday, November 23, 2010

पर्यावरण संरक्षण का अनूठा संदेश लेकर आते हैं सामा चकेवा

अररिया, जागरण प्रतिनिधि: सामा चकेवा की सदियों पुरानी कथा मिथिला व मत्स्य के इलाके की सुंदर सांस्कृतिक छटा है। देवोत्थान एकादशी के दिन धार्मिक कर्मकांड की आफिसियल क्लोजिंग के बाद कल्चर की छटा बिखेरने की अद्भुत कोशिश। सामा चकेवा के गीत न केवल एक बहन द्वारा अपने भाई व पति की सुख समृद्धि की कहानी बयान करते हैं, बल्कि पर्यावरण व जल संरक्षण का संदेश लेकर भी आते हैं। इस बार भी कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर रविवार की देर रात सामा चकेवा का त्यौहार पारंपरिक निष्ठा के साथ मनाया गया।
जरा एक गीत पर गौर कीजिये:
..गाम के राजा तोहें, हम्मर भैया हे, हाथ दस पोखरि खुनाय दीह, चंपा फूल लगाय दीह, सामा चकेवा खेल करय हे।
मेरा भैया गांव का राजा है और मेरे लिये कई तालाब बनबा देगा, चंपा फूल लगबा देगा ताकि सामा व चकेवा आकर उसमें क्रीड़ा कर सकें। कौन थे सामा व चकेवा?
जानकारों के मुताबिक सामा भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री थी। उनका विवाह चक्रवाक (चकेवा) के साथ हुआ था। दोनों प्रसन्नता पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। इसी बीच डिहुली नामक चेरिया ने सामा के चरित्र पर झूठा दोषारोपण कर उसे पिता श्री कृष्ण द्वारा शापित करवा दिया। सामा चिड़िया बन जाती है और विभिन्न स्थानों पर भटकने लगती है।
बाद में भाई साम्ब के प्रयासों से सामा की शाप मुक्ति होती है। वह अपने पति के साथ खुशी खुशी रहने लगती है। वहीं,चुरिया डिहुली को चुगलखोरी की सजा मिलती है। उसे चुगला बना कर मुंह में कारी व चूना लगा कर जला दिया जाता है।
सामा चकेवा त्यौहार को ले जिले के गांव व बाजारों में खासी चहल पहल रही। महिलाओं ने देर रात होते ही सामा चकेवा का का पर्व मनाया तथा चुगला के मुंह में आग लगा कर उसे चुगलखोरी की सजा दी।

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