Sunday, November 14, 2010

मैदान से गायब हो गए उम्दा खेल व खिलाड़ी

फारबिसगंज(अररिया),जासं.: कभी खेल और खिलाड़ियों की गतिविधियों से चर्चा में रहने वाले सीमांचल को फारबिसगंज क्षेत्र में खिलाड़ियों की गतिविधि निचले स्तर पर है। खेल का माहौल मृत प्राय है। बेहतर खिलाड़ियों का सुखाड़ चल रहा है। कभी फुटबाल और क्रिकेट जैसे खेलों के यहां के खिलाड़ी राज्य स्तर पर जाने जाते थे। अब न तो उस स्तर की प्रतियोगिताएं ही आयोजित होती है और न ही खेलों में रूचि लेने वाले लोग सक्रिय है। खेल के मैदानों में नवसिखुआ बच्चों की अधकचरी टीम मनोरंजन भर ही खेलते नजर आते हैं।
बहुमुखी खेल प्रतिभा के धनी उज्जवल कुमार डे उर्फ बच्चू दा बताते हैं कि यह क्षेत्र खेलों और खिलाड़ियों के लिए उर्जावान रहा है। लेकिन हाल के वर्षो में खेल गतिविधियां उच्च स्तरीय नहीं रह गयी है। वे बताते हैं कि यहां करीब 15 वर्ष पूर्व फुटबाल की मजबूत टीम हुआ करती थी। क्रिकेट के मैदान में स्वयं बच्चू दा, अशोक दुग्गर, ओम प्रकाश, बासू दा, संजय भगत, अजय सिंह बेदानी, विजय श्रीवास्तव, अजय कास्ती जैसे खिलाड़ियों का जलवा जिला से बाहर तथा नेपाल तक देखा जाता था। इनमें से अधिकांश विश्वविद्यालय अथवा जिला टीम से खेला करते थे। जय हिन्द क्रिकेट क्लब, राइजिंग क्रिकेट क्लब, करबला क्रिकेट क्लब, टाउन क्लब जैसी टीम वर्षो तक थी। इन टीमों के खिलाड़ी आनन्द अग्रवाल, श्रवण मंडल, राजेश बाल्मिकी, मनु मुकेश मानव, संजू तिवारी, जोगबनी के मिथिलेश झा सहित कई नामी खिलाड़ी क्रिकेट के अपने पीढ़ी के अंतिम पायदान पर थे। इसके बाद तो क्रिकेट टीम में निष्क्रियता आ गयी। अब उन टीमों का अस्तित्व भी नहीं बचा। वर्षो तक जेएचसीसी के चलान वाले मीडिया कर्मी उज्ज्वल चौधरी कहते हैं कि खिलाड़ी घटे, प्रतियोगिताओं के स्तर में गिरावट आयी, यहां तक की माहौल भी समाप्त होने लगा। भावुक होकर वे बताते हैं कि उनकी टीम अब पूरी तरह बंद हो चुकी है।
बच्चु दा बताते हैं कि फुटबाल के मैदान में फावर्ड खिलाड़ी राम सेवक मिश्रा, अजय सिन्हा, जीवानन्द झा, गोलकीपर मुस्ताक, काला मित्रा, सपन कुमार दास, तपन कुमार, मो. शमीम, मासूम आलम, सुनील सहित स्वयं बच्चू दा जैसे खिलाड़ी थे, जिनकी प्रतिभाएं खेल प्रेमियों को मैदान तक खींच लाता था। बच्चू दा अनोखी प्रतिभा के धनी रहे हैं। जितना अच्छा वह क्रिकेट खेलते थे उतना ही अच्छा फुटबाल और इतनी उम्दा टेबूल टेनिस के खिलाड़ी थे। उस समय अधिकांश खिलाड़ी ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के टीम का महत्वपूर्ण हिंसा हुआ करते थे। दरअसल पहले विद्यालय स्तर पर ही फुटबाल की टीमें हुआ करती थी, जिसके कारण खेल का एक सकारात्मक माहौल हुआ करता था, लेकिन स्कूलों में अब ऐसी कोई टीम नहीं रही। कबड्डी और पहलवानी जैसी खेलें तो दिखती भी नहीं है। क्रिकेट महंगे खेल होने और टेनिस बाल के प्रचलन के कारण खिलाड़ी दूरी भाग रहे हैं। बेहतर खिलाड़ियों के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर की टीमें में मौका नही मिलना भी यहां खेल की दुर्गति का एक कारण माना जाता है। जिला खेल संघ के सचिव मासूम रेजा बताते हैं कि सरकारी स्तर पर खेलों के लिए किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिलती है। जिलाधिकारी संघ के अध्यक्ष होते हैं। कोई-कोई जिलाधिकारी होते हैं जिनकी रूची खेलों में होती है और वे खेल के आयोजन में सहयोग करते हैं। संघ के माध्यम एथलेटिक्स सहित कुल 23 प्रकार की खेल गतिविधियां जिला में करवाया जाता है। जोकि संघ के सदस्यों, जिसमें पुरानी खिलाड़ी भी शामिल है। मासूम मानते हैं कि अब खेल का बेहतर माहौल नहीं रहा। निजी स्तर पर चारदीवारी के बीच टेनिस खेलने से इस महंगे खेल की गरीब प्रतिभागी सामने नहीं आ पाते हैं। इतना अवश्य हुआ है कि खेलों में हमेशा से सक्रिय रहने वाले बासू दा स्टेट एम्पायर पैनल में जगह बनाने में सफल रहे। वे आज भी सक्रिय है, लेकिन पूर्व के माहौल को जीवंत करने के लिए एक मुहिम और जोरदार प्रयास के साथ आर्थिक सहयोग की जरूरत बतायी। पर अब सवाल उठता है कि इसके लिए सामने कौन आएगा?

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