Sunday, December 25, 2011

मैला अंाचल में बिखरे हैं क्रिसमस के रंग


अररिया : मैला आंचल की धरती पर क्रिसमस ने कई रंग बिखेरे हैं। यहां प्रभु यीशु को आराध्य मानने वाले बिरजा मांझी जैसे ईसाईयों का क्रिसमस भी मन रहा है तो आजादी पूर्व के दो सौ सालों में अंग्रेज साहबों का क्रिसमस भी अपने खूबसूरत रंग बिखेरता था।
इस जिले में जीसस क्राइस्ट को मानने वाले आज भी हजारों में हैं, जिनमें एक एंग्लो इंडियन परिवार के अलावा अधिकांश आदिवासी समुदाय के इसाई हैं। रानीगंज प्रखंड में इनकी बहुलता है। रानीगंज के बड़हरा में रोमन कैथोलिक ईसाईयों का खूबसूरत चर्च भी है। वहीं, अररिया प्रखंड व फारबिसगंज प्रखंड में भी ईसाई धर्म के अनुयायी रहते हैं।
क्रिसमस को लेकर रविवार को बड़हरा चर्च, फारबिसगंज के गोलाबाड़ी चर्च सहित अन्य स्थानों को बेहद खूबसूरती के साथ रोशनी व अन्य सामानों की मदद से सजाया गया। लेकिन जानकार बताते हैं कि क्रिसमस का इससे भी सुंदर स्वरूप तब सामने आता था, जब अंग्रेज साहब यहां रहते थे।
जानकारों के मुताबिक अररिया जिले का राजस्व प्रशासन सुल्तानपुर इस्टेट के हाथों में था। इस इस्टेट के संस्थापक एजे फॅा‌र्ब्स थे। वे क्रिश्चयन थे तथा जमींदारी कार्य करते थे। उनके अधीन कई स्थानों पर क्राइस्ट को मानने वाले इंप्लाई भी रहते थे।
इसके अलावा रामपूर बुधेसरी के मि. एस ब्राउन, रानीगंज लालपुर की मिस गोल्डहाक, गीतवास के ग्लैडस्टोन, फारबिसगंज के ईरौल मैके, फारबिसगंज के ही जूट व्यवसायी रैली बंधु, बास्टीन, केव, नाथपुर के विलियम ग्रे, पैरी तथा मि. किलविक, मिर्जापुर कोठी के एडवार्ड सैमुएल पाइन जैसे अंग्रेज भी यहां रहते थे। लिहाजा क्रिसमस का पर्व जिले का एक प्रमुख आकर्षण होता था।
मिर्जापुर में रह रहे एडवार्ड पाइन के वंशजों ने बताया कि क्रिसमस का रंग तो आज भी बिखरता है लेकिन तब की बात ही कुछ और होती थी। इस आयोजन में हिंदू भाई भी शरीक होते थे और पूरी श्रद्धा के साथ क्रिसमस का केक सबके बीच बंटता था।

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