Wednesday, January 11, 2012

बंध्याकरण विवाद से उपजे सवालों का कौन देगा जवाब?


अररिया : किसी मरीज को दवा आखिर क्यों दी जाती है? उत्तर यही होगा कि रोग से चंगा होने के लिए, पर दवा सही व उपयुक्त पोटेंसी की होनी चाहिए। लेकिन दवा अगर एक्सपायर्ड हो तो क्या उसका सेवन करने वाला मरीज चंगा हो जायेगा? कपरफोड़ा के बंध्याकरण कैंप में एक्सपायरी दवा के प्रयोग जैसी क्रिमिनल लापरवाही के बाद यह सवाल स्वाभाविक रूप से सामने आता है। एक प्रश्न यह भी कि क्या पूर्व में शिविरों में भी एक्सपायरी दवा का प्रयोग हुआ है? कैंप में एसपी शिवदीप लांडे ने जो दवाएं पकड़ी उनका स्रोत क्या है? उनकी आपूर्ति करने वाला कौन है? एनजीओ ने दवाएं कब खरीदी थी?
इन प्रश्नों का जवाब जिले के स्वास्थ्य विभाग व सिविल सर्जन को देना चाहिए, लेकिन वे निरंतर प्रयास के बावजूद फोन ही नहीं उठा रही हैं। उधर, कपरफोड़ा कैंप में एसपी शिवदीप लांडे की छापेमारी के बाद स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्रीय उप निदेशक सह सिविल सर्जन डा. हुस्न आरा वहाज ने यही कहा कि एक्सपायरी दवा के प्रयोग से मरीज पर कोई खतरा नहीं होता। एक्सपायरी दवा का वितरण मानवीय भूल है। अगर खतरा नहीं होता तो सीएस साहब क्या यह बताएंगी कि दवा के रैपर पर एक्सपायरी तिथि का उल्लेख क्यों किया जाता है? दवा खरीदते वक्त इस बात का एहसास नहीं था क्या? चलिए, लेने वक्त भूल हो गयी तो बांटते वक्त इस भूल का एहसास क्यों नहीं हुआ?
इस मामले में ड्रग इंस्पेक्टर उदय वल्लभ का बयान भी काबिले गौर है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि एक्सपायरी दवाओं का प्रयोग मानव स्वास्थ्य के लिए घातक होता है। इस मामले को लेकर उन्होंने प्राथमिकी भी दर्ज करवायी है।
कपरफोड़ा प्रकरण से एक बात और स्पष्ट होती है। जिले में परिवार नियोजन कैंपों की निगरानी व अनुश्रवण के प्रति स्वास्थ्य विभाग कहीं न कहीं ढिलाई बरतता है। कैंप में व्याप्त गंदगी व कुव्यवस्था तथा मौके पर से चिकित्सककी गैरहाजिरी से साफ है कि स्वास्थ्य विभाग जनसंख्या नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम के प्रति उदासीन रवैया रखता है।
विदित हो कि बीते वक्त में इसी कुर्साकाटा प्रखंड में आयोजित परिवार नियोजन कैंप में अत्यधिक रक्तस्राव के कारण बखरी की एक महिला की मौत हो गयी थी। क्या उस कैंप में भी एक्सपायरी दवाओं का प्रयोग किया जा रहा था? इस बार के कैंप में भी एक महिला को रक्तस्राव प्रारंभ हो गया था और उसकी स्थिति गंभीर हो गयी थी। परिवार कल्याण शिविरों के आयोजन के लिए स्वास्थ्य विभाग एनजीओ को ही क्यों तवज्जो दे रहा है?
उल्लेखनीय है कि कुल प्रजनन दर (टीएफआर) के मामले में अररिया जिला देश के अव्वल जिलों में से एक है। हर सेंसस में यहां की आबादी तीस-पैतीस प्रतिशत के हिसाब से बढ़ जाती है। जानकार सूत्रों के मुताबिक अररिया की मौजूदा टीएफआर 4 से अधिक है। ऐसे में परिवार नियोजन कैंपों के अनुश्रवण व निगरानी में ढिलाई बरतना क्या गंभीर बात नहीं?

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