Wednesday, April 11, 2012

विरासत को बचाने का आंदोलन है रेणु महोत्सव


अररिया : अररिया ही नही कोसी अंचल के महान कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु आज उनकी प्रसिद्ध कहानी ठेस के सिरचन की तरह भुला दिए गए हैं। जिले के साहित्यकार रेणु के नाम को आज भी पूरे उर्जा के साथ जीवंत बनाये रखा है। मैला आंचल धरती पर पहली बार रेणु महोत्सव कार्यक्रम की शुरूआत बुधवार को की गई है। भारतीय क्षेत्रीय पत्रकार संघ द्वारा नेताजी सुभाष स्टेडियम में 11 अप्रैल से पांच दिवसीय रेणु महोत्सव का आगाज किया गया।
रेणु पुण्यतिथि के मौके पर शुरू किए गए महोत्सव के दिन ही अररिया की अनमोल सांस्कृतिक महत्व पर आधारित राजेशराज के निर्देशन में बनाई गई डाक्यूमेन्ट्री फिल्म का भी प्रदर्शन हुआ। जिसे काफी सराहा गया। संघ के अध्यक्ष तथा पुस्तक मेला सह रेणु महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष चन्द्रभूषण व संयोजन समिति के अध्यक्ष चन्द्रभूषण व संयोजक राज राघव का कहना है कि रेणु महोत्सव के बहाने होगी विकास की बात। इनकी माने तो जिला को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाना व इसे विश्व के पर्यटन मानचित्र पर लाना भी महोत्सव के उद्देश्य का अंग है।
अररिया में गंगा-जमुनी लोक संस्कृति के जन-जन में रची व बसी है। इसलिए यहां की लोक कलाएं, लोक गाथाओं साहित्य व संस्कृति की अनमोल सांस्कृतिक विरासत से संपूर्ण भारत व विश्व को परिचित कराने का एक प्रयास भी रेणु महोत्सव है।
स्टेडियम में लगे स्टालों पर रेणु के द्वारा 1945 में लिखी गई पहली कहानी बट बाबा, 1954 में लिखे प्रथम उपन्यास मैला आंचल पुस्तक प्रेमियों को अपनी ओर खींच रहा है। इसके अलावा रेणु की परती परिकथा, दीर्घ तपा, कलंक मुक्ति, पलटु बाबु रोड, ठुमरी, कितने चौराहे, जुलूस, आदिम रात्रि की महक, अच्छे आदमी, ऋण जल-धन जल, नेपाली क्रांति कथा, श्रुत अश्रुत पूर्व, वन तुलसी की गंध, एक श्रावणी दोपहरी की धूप, कवि रेणु कहे, फिल्म स्क्रिप्ट तीसरी कसम के अलावा रेणु की बाल कहानियां जैसी कृतियां साहित्य प्रेमियों को खुशी प्रदान कर रही है।

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