Saturday, April 14, 2012

बस दो दिन और होगी किताबों से मुलाकात


अररिया : शाम गहराने के साथ नेताजी सुभाष स्टेडियम में चल रहे पुस्तक मेला सह रेणु महोत्सव की रौनक बढ़ जाती है। पुस्तक प्रेमियों के कदम मेले की राह पर चल पड़ते हैं। लेकिन स्टालों पर बिखरी विभिन्न विषयों की पुस्तकों से अब मुलाकात के सिर्फ दो ही दिन पुस्तक प्रेमियों के हिस्से में हैं। रविवार 15 अप्रैल पुस्तक मेले का अंतिम दिन होगा। आपकी सुविधा के लिए किताबों का यह मेला प्रात: 11 बजे से शुरू होकर राशि 8 बजे तक जारी है। पुस्तक-विक्रेताओं और प्रकाशकों ने पुस्तक-प्रेमियों को आकर्षित करने के लिए किताबों पर छू की दरें बढ़ानी कर दी है।
रेणु की रसप्रिया कहानी का पाठ:
रेणु महोत्सव के दौरान रेणु की चर्चित कहानी रसप्रिया का पाठ किया गया। इस कहानी को रेणु प्रेमियों ने बड़े धैर्य के साथ सुना और कहानी में बुने गए कथातत्व को शिद्दत से महसूस किया। कहानी में रेणु का अपना अंचल पूरी तरह जीवंत है। रसप्रिया के बहाने कथा साहित्य में रेणु के विशिष्ट योगदान की विस्तार से चर्चा की गई।
तीसरी कसम की यादों में खो गए लोग:
सभागार मंच पर जब सायंकाल रेणु की चर्चित कहानी मारे गए गुलफाम पर केंद्रित तीसरी कसम फिल्म का प्रदर्शन हुआ तो पूरा सभागार भरा रहा। इस फिल्म को देखने बुजुर्ग और युवा दोनों ही पीढ़ी के लोग आए। तीसरी कसम को देखते हुए लोग फिल्म की कथा की नही बल्कि उसके कर्णप्रिय धुनों और और गीत के बोलों में पूरी तरह खो गए। अपने समय में बाक्स आफिस पर यह फिल्म भले ही हिट न रही हो। लेकिन लोगों के दिलों में फिल्म और उसके किरदार अपनी जीवंत अदायगी के कारण आज भी छाए हुए हैं। चाहे हिरामन के रूप में राजकपूर हों या हीराबाई के रूप में वहीदा रहमान लोग आज भी हीरामन और हीराबाई, महुआ घटवारिन की लोकथाओं में अपना सबकुछ खोते और बहुत कुछ खोजते दिखे।
बाक्स के लिए
एक आपबीती का प्रदर्शन 15 अप्रैल को
अररिया, संसू: एक आपबीती डाक्यूमेन्ट्री का प्रदर्शन राष्ट्रीय पुस्तक मेला सह रेणु महोत्सव में 15 अप्रैल को सांय 6 बजे होगा। इस डाक्यूमेंट्री में बिहार के पूर्वोत्तर सीमांचल के 2830 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस अंचल के प्राचीन से आज तक के दौर के रोमांचक इतिहास जलवायु, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य, उद्योग धंधे, रहन-सहन, बोल-चाल, खान-पान, पर्व-त्यौहार और मेल, साहित्य और खेल में आए बदलावों की धड़कन को और यहां के संघर्ष, अभाव, दुख-दर्द को जीवंत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। साथ ही यहां की विभूतियों की चर्चा है। आजादी के 65 वर्षो बाद भी यहां के लोगों के चेहरे पर छाई निराशा और हताशा की तस्वीर आपको बेचैन करने के लिए काफी है। डाक्यूमेंट्री के प्रोड्यूसर वरिष्ठ लेखक पत्रकार चन्द्र भूषण हैं और इसका निर्देशन राजेश राज ने किया है।

0 comments:

Post a Comment