अररिया : दिन-रात एक कर, खून-पसीना बहाकर, धूप-बारिश की चिंता किये बगैर खेतों में फसल उपजा कर हमारा पेट भरते हैं किसान। लेकिन उनका हमदर्द न तो प्रशासन है और न हीं जनप्रतिनिधि। पिछले तीन वर्षो में जिले के किसानों की कमर प्राकृतिक आपदाओं के कारण पहले ही टूट चुकी है। अब सरकारी स्तर से थोड़ा बहुत मिलने वाली सहायता राशि भी लगातार दूसरे वर्ष सरकार को वापस कर दी गयी। किसानों की तो हर तरफ मौत ही मौत है।
वित्तीय वर्ष 2010-11 में अररिया जिले को प्रथम किस्त के तौर पर किसानों को फसल पटवन के लिए डीजल अनुदान के रूप में छह करोड़ से अधिक की राशि प्राप्त हुई थी। सरकार ने इसकी उपयोगिता प्राप्त होने के पश्चात दूसरे किस्त की राशि भेजने की बात कही थी। पर राशि वितरण प्रक्रिया में इतनी जटिलता है कि उस राशि को प्रशासन ने एक वर्ष अपने पास रखकर सरकार को लौटा दिया। जिला आपदा प्रबंधक पदाधिकारी का मानना है कि राशि प्रखंड को उपावंटित कर दिया गया था, लेकिन वितरण प्रक्रिया जटिल होने के कारण प्रखंड ने राशि वापस कर दी इससे पहले भी गत वर्ष जिला प्रशासन ने बीचड़ा बचाने के लिए जिले के प्राप्त 75 लाख, खरीफ फसल बुआई के लिए प्राप्त 12 करोड़ 49 लाख रुपये समेत 25 करोड़ की राशि प्रत्यर्पित की गयी थी। आज किसान महंगे डीजल खरीदकर अपने फसलों में पटवन कर रहे है। सरकार से प्राप्त डीजल अनुदान की राशि पंचायतों में शिविर लगाकर आवेदन लेने के पश्चात ही वितरण करने का प्रावधान है। परंतु विडंबना यह है कि न तो बीडीओ साहब इस ओर ध्यान दिये और न हीं पंचायत के जनप्रतिनिधिगण जिन्हे हर पांच वर्ष पर उन्हीं किसानों के पास जाना पड़ता है। जिले के किसानों को सिर्फ डीजल अनुदान की राशि ही वंचित नहीं होना पड़ा बल्कि सरकार से प्राप्त मक्का क्षति के लिए 26 लाख रुपया भी प्रशासन ने वितरण के अभाव में सरकार को लौटा दी है।
क्यों नहीं हो पा रही है वितरण:- डीजल अनुदान की राशि प्राप्त करने के लिए किसानों को पेट्रोल पंप का रसीद देना होता है। परंतु किसान पंप दूर होने की वजह से लोकल किराना, पान दुकान पर बिक रहे डीजल को खरीद लेते हैं। जहां पर उन्हें रसीद नहीं दिया जाता है। ग्रामीण इलाकों में कुकुरमुत्तों की तरह चाय-पान दुकान से लेकर घर पर लोग पेट्रोल, केरोसीन व डीजल खुलेआम बिक्री करते है।
प्रशासनिक कार्रवाई नदारद- गांव में खुलेआम तेल बेचने वाले दुकानदारों पर प्रशासनिक स्तर से आज तक कोई कार्रवाई नही की गयी। जिससे वैसे दुकानदारों की वजह से जिले के किसानों को सरकारी अनुदान की राशि से लगातार दूसरे वर्ष वंचित होना पड़ा।
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