Friday, December 9, 2011

जन-जन व कण-कण के कवि थे विद्यापति: उपराष्ट्रपति


जोगबनी (अररिया) : विद्यापति की रचनाएं आज भी जन-जन व कण कण से जुड़ी हैं। विद्यापति को छोड़ कोई कवि ऐसे नहीं हुए जिन्हें लोग छह हजार वर्ष बाद भी अपने जेहन में बसाये रखा हो। विद्यापति को यदि सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो मिथिला और मैथिली भाषा के विकास में संघर्ष करें।
उक्त बातें शुक्रवार को विराटनगर में आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व समारोह में नेपाल के उप राष्ट्रपति परमानन्द झा ने उपस्थित जन समुदाय के समक्ष कही। दो दिवसीय विद्यापति स्मृति समारोह का आयोजन मैथिली सेवा समिति विराटनगर द्वारा भूमि प्रशासन चौक स्थल पर किया गया था। बतौर मुख्य अतिधि श्री झा ने विद्यापति की जीवनी पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि कवि कोकिल विद्यापति मैथिल समाज के प्रतिष्ठित प्रणेता थे। उनकी रचनाएं आज भी घर-घर में गयी जाती हैं। उन्होंने कहा कि उनका जन्म भले ही भारत में हुआ हो लेकिन उनकी कर्म भूमि नेपाल रही है। उन्होंने कहा कि विराटनगर में विद्यापति स्मृति समारोह पर्व मनाया जाना मधेश आंदोलन की देन है। उन्होंने कहा कि नेपाल सरकार विद्यापति के नाम पर काफी सहयोग कर रही है आवश्यकता है संविधान में मैथिली भाषा को समाहित करने की।
इस मौके पर भारत की ओर से विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद सुकदेव पासवान ने कहा कि मिथिला को 8वीं सूची में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में शामिल कराया था तथा कहा था कि अगर कोई राज्य बनेगा तो वह मिथिलांचल होगा। उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल के बीच बेटी-रोटी का संबंध है और भारत नेपाल को एक समृद्ध राष्ट्र देखना चाहता है। इसके लिए भारत नेपाल को हर संभव मदद करने को तैयार है तथा कर भी रहा है। इस मौके पर पूर्व विधायक लक्ष्मी नारायण मेहता, नेपाल के समासद जयराम यादव, प्रधानमंत्री के प्रेस सलाहकार रामकिशन यादव, वैजू बाबू सियाराम झा, प्रवीण चौधरी, समिति के अध्यक्ष डा. एसएन झा सहित भारी संख्या में अतिथि व जन समुदाय उपस्थित थे।

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