Saturday, May 21, 2011

बार-बार के चक्रवाती तूफान से लोग हो रहे हलकान


अररिया : सन 2004 में अररिया जिले में जोरदार तूफान आया था। भीषण चक्रवाती तूफान जिसमें तकरीबन तीन दर्जन लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। करोड़ों की फसल क्षति और हजारों घर धराशाई हो गए थे। तब से तबाही का एक अंतहीन सिलसिला प्रारंभ हो गया है, जो हर साल एक अभिशाप के रूप में सामने आ रहा है।
जिले में चक्रवाती तूफान से डेढ़ सौ से अधिक जानें जा चुकी हैं। इनमें वर्ष 2004 में 42 व विगत वर्ष 2010 में हुई 60 मौतें शामिल हैं।
इस साल तो आसमान से उतरने वाली तबाही ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। विगत दो महीने में आठ तूफान आ चुके हैं। तूफान की दिशा पश्चिम उत्तर कोने से प्रारंभ होती है और तेज धूल भरी आंधी के साथ तबाही का तांडव शुरू हो जाता है। आधे घंटे की तेज आंधी के बाद चक्करदार बारिश। ऐसा प्रतीत होता है कि फणीश्वर नाथ रेणु की परती परिकथा में वर्णित 'कुल्हड़िया आंधी व पहड़िया पानी' का अभिशाप अररिया व आसपास सिर चढ़ कर बोलने लगा है।
इस संबंध में भौतिकी व भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि इलाके में पर्यावरणीय परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है। भौतिकी के यूनिवर्सिटी प्रोफेसर डा. टीके झा के अनुसार पूर्णिया प्रमंडल की फिजां में ग्रीन हाउस गैसों का परिणाम तेजी के साथ बढ़ रहा है, जिससे तापक्रम में वृद्धि हो रही है। इससे अक्सर कम दाब के क्षेत्र बन जाते हें तथा लोगों को भीषण तूफान का सामना करना पड़ता है। डा. झा ने ग्रीन हाउस गैसों के बढ़त स्तर का अध्ययन व इसके परिमाण को कम करने की आवश्यकता बताई।
वहीं, भूगर्भ के जानकार अभियंता वाइके मिश्रा ने बताया कि कोसी की बाढ़ के बाद इलाके में जगह- जगह सैंड डिपाजिट बने रह गए। इनसे लगातार उच्च ताप व कम दाब के क्षेत्र बनते रहते हैं और आंधियां आती रहती हैं।
चालू वर्ष के दौरान ओला वृष्टि, आंधी तथा तूफान ने खासकर किसानों की कमर तोड़ दी है। वहीं, विडंबना है कि सरकारी घोषणा के बावजूद किसानों को फसल क्षति आदि का मुआवजा नहीं मिल रहा।

0 comments:

Post a Comment