Wednesday, May 18, 2011

तरक्की की राह चली राजवंशी समुदाय की महिलाएं


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फोटो: 18 एआरआर 3
कैप्शन-प्रशिक्षण ले रही महिलाओं के साथ नाबार्ड के अधिकारी
......महिला सशक्तीकरण का लोगो अवश्य लगाएं
- तीन दर्जन से अधिक महिलाएं हथकरघा से बना रही जूट के रंग-बिरंगे सामान
- नाबार्ड के सहयोग से बदल रही राजवंशी महिलाओं की तकदीर
-गोवा के पांच सितारा होटलों व अन्य प्रांतों में जूट निर्मित सामान भेजने की तैयारी
-नाबार्ड डीडीएम ने पहल के लिए दैनिक जागरण को दिया साधुवाद
मनोज कुमार,अररिया
भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित सिकटी प्रखंड की राजवंशी महिलाएं स्वरोजगार के जरिए स्वावलंबन की जो मिसाल कायम की है वह महिला सशक्तीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होने वाली है। जूट के रंग-बिरंगे सामान बनाने को लेकर मिली पुश्तैनी सौगात आज उनके अपने पैरों पर खड़ा होने का साधन बन गई है।
दैनिक जागरण ने जब उनकी दयनीय स्थिति को प्रकाश में लाया तो नाबार्ड ने वहां की करीब तीन दर्जन महिलाओं को हथकरघा का प्रशिक्षण देने के लिए बरदाहा में शिविर लगाया और एक स्वयंसेवी संस्थान ने उनके द्वारा निर्मित जूट का झल्ला व कालीन की खरीदारी के लिए कटिहार के एक जूट मिल को तैयार किया। यह जूट मिल उनके सामान को गोवा के पांच सितारा होटलों व अन्य प्रांतों में भेजेगा। आज ये महिलाएं न सिर्फ अपनी व अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम हैं बल्कि किसी पुरुष का मोहताज भी नहीं है। इस संदर्भ में नाबार्ड के डीडीएम एसके झा ने बताया कि ये महिलाएं आधी आबादी की सशक्तीकरण के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित सिकटी प्रखंड मं राजवंशी समुदाय के लोगों की बड़ी आबादी निवास करती है। इस पिछड़े समुदाय के लोगों की जीवनशैली भी खास्ता ही है, लेकिन इस समुदाय की महिलाओं को पुरखों से जूट के सामान बनाने की कला पुश्तैनी सौगात के रूप में मिली हुई है। इस समुदाय क महिलाएं हाथ के सहारे पहले जूट की धुनाई करती हैं फिर अपनी जंघा पर पतला रेशा तैयार करती हैं। इस रेशा को विशेष रूप से तैयार माड़ी के सहारे कड़ा किया जाता है फिर अपने पीठ और पैर में रस्सी को लपेट कर विशेष औजार के जरिए जूट का खूबसूरत झल्ला व चादर तैयार करती है। एक झल्ला तैयार करने में महिलाओं को करीब एक माह का समय लग जाता है साथ ही काफी मेहनत भी करनी पड़ती है। इसके अलावा उन्हें बाजार मूल्य की सही जानकारी नहीं होने के कारण वे पहले उसे औने-पौने दाम पर ही बेच देती थी। लेकिन दैनिक जागरण ने उन महिलाओं की कला और उनकी समस्याओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया तथा सहयोग मिलने पर उनकी कला को रोजगार के अवसर में बदले जाने पर भी फोकस किया था। जिसके बाद उन महिलाओं के तारनहार के रूप में नाबार्ड आगे आया। नाबार्ड के डीडीएम सुनील कुमार झा ने उन महिलाओं का सर्वेक्षण कराया तथा उनकी कला व उत्कृष्ट उत्पाद को देख दंग रहे गये। बाद में नाबार्ड के वित्त पोषण में एक स्वयंसेवी संस्था आदर्श रहनुमा विकास संस्थान को उनके उत्थान का जिम्मा सौंपा। बाद में संस्थान की ओर से बरदाहा में उन महिलाओं को सुधा कार्यक्रम के अंतर्गत हस्तकरघा द्वारा कौशल उन्नयन एवं डिजाइन विकास का प्रशिक्षण शुरू किया। संस्था के बीके झा ने बताया कि महिलाओं को सामूहिक रूप से लूम भी दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाए गए जूट के सामान को कटिहार के एक प्रतिष्ठित जूट मिल द्वारा खरीदे जाने का आश्वासन दिया गया है। उधर पिछले दिनों प्रशिक्षण कार्यक्रम के निरीक्षण के लिए पहुंचे नाबार्ड के डीडीएम एसके झा ने बताया कि राजवंशी समुदाय की महिलाओं में कला का भंडार छिपा है और जिस ढंग से ये महिलाएं स्वावलंबन की ओर अग्रसर हो रही हैं वह आने वाले समय में पूरे देश के लिए मिसाल बनेगी। उन्होंने उन महिलाओं की दुर्दशा को सामने लाने के लिए दैनिक जागरण को साधुवाद दिया।

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