Monday, May 14, 2012

पचास साल में भी नहीं हो पायी टाउन प्लानिंग


अररिया : आसमान की ऊंचाईयों से अररिया शहर हरियाली की चादर के नीचे छुपा लगता है। लेकिन इस हरी चादर के नीचे छुपा है गंदगी व दुर्गधयुक्त नालों से भरा एक विकासशील शहर। अनियंत्रित ग्रोथ व कुप्रबंधन का शिकार। सन् 1875 में अस्तित्व में आये अररिया शहर का विस्तार सन् 1990 में जिला मुख्यालय का दर्जा पाने के बाद तेजी से हो रहा है। शहर के पश्चिमी इलाके में खड़े परती परिकथा के चौदह चर्चित बालू बुर्ज अब विलुप्त हो चुके हैं तथा उनकी जगह कंक्रीट के बुर्ज तेजी के साथ उग रहे हैं।
कुदरती तौर पर उगने वाले जंगलों में भी एक सिस्टम होता है, लेकिन शहर के विस्तार को लेकर अब तक कोई प्लानिंग सामने नहीं आयी है। मकान बनते जा रहे हैं, लेकिन नागरिक सुविधाओं का ख्याल नहीं रखा जा रहा है। सड़कें बनती जा रही हैं, लेकिन जल निकासी की व्यवस्था नहीं हो रही।
जानकारों की मानें तो अररिया सर्वाधिक तेजी के साथ बढ़ने वाला शहर है। इसकी मौजूदा ग्रोथ रेट पचास परसेंट से अधिक है। फोर लेन हाइवे, सुपौल स्टेट हाइवे सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण सड़कों के निर्माण के बाद शहर तेजी से बढ़ रहा है। ऐसा माना जाता है कि तिरसुलिया घाट में परमान पर पुल बनने के बाद शहर और तेजी से बढ़ेगा। लेकिन शहर के नीति निर्धारक इन बातों का ध्यान नहीं रख रहे हैं। अब तक शहर के विकास का मास्टर प्लान तक नहीं बन पाया है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार शहर में सड़कों की लंबाई, पेय जल, शौचालय आदि की मौजूदा मांग में 2030 तक दूनी वृद्धि की संभावना है। लेकिन उस दिशा में अभी तक कुछ नहीं किया जा रहा है। इधर, शहर में पार्किंग, बस पड़ाव, पार्क आदि जैसी जरूरतों की तो अब तक बुनियाद भी नहीं पड़ी है। बैंक, नगर परिषद, न्यायालय व कचहरी कैंपस आदि में हजारों की भीड़ के बावजूद अब तक पार्किंग की व्यवस्था नहीं हो पायी है। विडंबना तो यह है कि जिस नप के जिम्मे शहर में नागरिक सुविधाओं की जिम्मेवारी है उसी ने अपने दफ्तर के सामने टेम्पों पड़ाव बनवा रखा है। बस पड़ाव व शहर में आने वाले वाहनों से फैलने वाली गंदगी दूर करने के नाम पर नगर परिषद हर साल लाखों रुपये वसूलता है, पर इसका छदाम भी सुविधाओं के लिए खर्च नहीं होता।
पश्चिमी इलाके के बालू बुर्जो की जगह इन दिनों शहर के सबसे बड़े मुहल्ले शिवपुरी व ओम नगर बसे हैं। इनसे उत्तर कृष्णपुरी व चाणक्यपुरी मुहल्ले भी बस रहे हैं। लेकिन इन इलाकों में न तो अच्छी सड़कें हैं और न ही जल निकासी नालों का प्रबंध किया गया है।
साइड स्टोरी 1
125 साल में 37 गुना बढ़ गया अररिया
अररिया, जाप्र: अररिया शहर का मूल नाम बसंतपुर है। यह मान्यता है कि इस गांव में सात आठ सौ साल पहले राजा बसंत की राजधानी थी। कोसी की बाढ़ में इस स्थान का अस्तित्व समाप्त हो गया। बसंत राजा ने जलालगढ़ के निकट जीवछ तालाब सहित 72 तालाबों का निर्माण करवाया और अपनी राजधानी वहीं लेकर चले गये। नवाबों के शासन काल में अररिया बैरगाछी को शासन का मुख्यालय बनाया गया। अंग्रेजों ने उसी के निकट गौरामणि में शहर बसाया, लेकिन परमान व सिपहिया नदियों की बाढ़ के बाद सन् 1875 में बसंतपुर का अररिया के नाम से एक बार फिर उदय हुआ।
तबसे अब तक इस शहर का 37 गुना ग्रोथ हुआ है। इंपीरियल गजेटियर के अनुसार सन 1891 के सेंसस
में यहां डेढ़ हजार लोग रहते थे। आज की आबादी लाख को छू रही है।
साइड स्टोरी 2
बाढ़ से सुरक्षा को लेकर उपाय नहीं
अररिया, जाप्र: अररिया शहर के सटे उत्तर व पूरब से परमान नदी बहती है। इस नदी का पानी बाढ़ के दिनों में अक्सर खतरे की घंटियां बजाता है। लेकिन इससे बचाव के कोई उपाय नहीं हो रहे।
वर्ष 1988 में शहर सुरक्षा को बांध बना जरूर, लेकिन कुछ सालों बाद ककोड़वा बस्ती के निकट यह टूट गया। तबसे अब तक इसकी मरम्मत नहीं हुई। खरैहिया बस्ती, काली बाजार आदि मुहल्लों में नदी का कटाव हर साल होता है, लेकिन बचाव के प्रयास नहीं हो रहे। इतना ही नहीं, शहर के मरिया टोला व घाट टोला जैसे मुहल्ले नदी के पार होने की वजह से बरसात के दिनों में मुख्यालय से पूरी कट जाते हैं।
साइड स्टोरी 3
सौंदर्यीकरण व पार्क अररिया के लिए हैं सपना
अररिया, जाप्र: अररिया शहर है, शहर नहीं। अररिया कचहरिया टाउन है। कचहरी बंद अररिया बंद। इन बातों को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। जो भी हो, शहर होने के बावजूद यहां शहरोचित सुविधाएं नहीं हैं।
विडंबना है कि यहां न तो पार्क है और न ही ऐसा कोई खुला स्थान जहां छोटे बड़े लोग एकत्र होकर खुली हवा में सांस ले सकें।
शहर की सड़कें चौड़ी नहीं, स्ट्रीट लाइट हमेशा गायब और गलियां गंदगी से भरी रहती हैं।
साइड स्टोरी 4
अब तक नहीं बना रिंग रोड
अररिया, जाप्र: अररिया लगातार बढ़ रहा है। जाहिर है कि यातायात व आवागमन की समस्या भी गहरा रही है। पीक आवर में शहर की मुख्य सड़कों पर अक्सर जाम जैसी स्थिति रहती है। बढ़ते यातायात को नियंत्रित करने के लिए कई साल से रिंग रोड की मांग उठ रही है। लेकिन अब तक इस मांग की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
जानकारों की मानें तो बेलबा पुल के निकट से खुशियाली घाट होते हुए तिरसुलिया घाट के निकट से गोढी चौक तक रिंग बांध व उसके ऊपर रोड बनाने से न केवल एक शानदार सड़क उपलब्ध हो जायेगी, बल्कि शहर सुरक्षा को लेकर बेहतर विकल्प भी मिल जायेगा।

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