Wednesday, May 16, 2012

जिले में जमीन संघर्ष का पुराना इतिहास


अररिया : यह आंकड़ों और इतिहास की बात है। जिले में जमीन संघर्ष का इतिहास काफी पुराना है। समय-समय जमीन कब्जे दर्जनों मामले का गवाह बन चुका है अररिया।
दो दशक पूर्व सिमराहा थाना क्षेत्र अंतर्गत रमै-खवासपुर गांव में कभी गोलाबाड़ी नामक जंगल मशहूर हुआ करता था। इस जंगल में शेर, हाथी एवं अन्य दुर्लभ जंगली प्राणी रहा करता था। लेकिन सैकड़ों की संख्या में पारंपरिक हथियार से लैश होकर आदिवासियों ने गोलाबाड़ी में धावा बोला। जंगल तो उजड़ हीं गयी, रातों रात सैकड़ों लोग वहां घर बना डाले। जंगल के नाम पर आज वहां एक वृक्ष भी नही है। हालांकि कब्जा करने के दौरान जमीन के दखलकार एवं आदिवासियों के बीच खूनी संघर्ष की स्थिति बनी लेकिन प्रशासन के पहल पर मामला शांत करा दिया था। इसी दौरान धर्मगंज के निकट पकड़ी गांव में भी कुछ ऐसा ही हुआ। तीन वर्ष पूर्व नरपतगंज के अचरा-सुरसर के निकट एक सौ अधिक बीघा जमीन के लिये आदिवासी एवं प्रशासन के बीच कई बार झड़प हुई। फारबिसगंज के परवाहा, औराही हिंगना, रानीगंज के काला बलुआ में पिछले दो वर्ष पूर्व तक जमीन कब्जा करने को लेकर हिंसक झड़प, हवाई फायरिंग और नाकेबंदी की घटना से ग्रामीणों में दहशत का माहौल बना रहा। कोचगामा के ग्रामीणों की मानें तो अररिया प्रखंड के सात भूमि विवाद के ऐसे मामले हैं जहां आदिवासी जबरन कब्जा करने की तैयारी में है। जिसमें चार दिन पूर्व कोचगामा की जमीन पर कब्जा का मामला शामिल है। अंचल पदाधिकारी तैयब आलम शाहिदी ने बताया कि प्रखंड के कुसियारगांव के 3, गिदरिया के 1, पैकटोला में दो एवं मिर्जापुर के भूमि के मामले में जिला पदाधिकारी को रिपोर्ट सौंपी गयी है। ऐसे मामले जोकीहाट, पलासी में भी करीब एक दर्जन हैं। पिछले वर्ष मठ की जमीन पर कब्जा करवाने के आरोप में तारा दासी को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था।

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