Monday, June 20, 2011

सरंक्षण के अभाव में दम तोड़ रही देवरिया की कला


अररिया : अररिया प्रखंड अंतर्गत सौरा तट पर बसा देवरिया गांव। कुदरत ने शायद यहां दोनों हाथों से खूबसूरती लुटाई है। वास्तव में यह फणीश्वर नाथ रेणु की ठेस के सिरचन का इलाका है। रंगीन सूत के फंदों की मदद से बांस की कमाचियों पर खूबसूरत कछुवा व पनमा। सूत के सुंदर फंदों से बने पंखों के रंग हों या फिर सूत व ऊन की हस्तनिर्मित खूबसूरत चादरें, ऐसा प्रतीत होता है कि अररिया जिले के देवरिया गांव की महिलाएं पैदाइशी कारीगर हैं।
कला शायद उन्हें विरासत में मिली है। लेकिन फारवार्ड लिंकिंग व बाजार के अभाव में सौरा तट पर बसे इस सुंदर गांव में कला दम तोड़ रही है।
जीवन की कठिन परिस्थिति के बीच एक संपूर्ण पारिवारिक यूनिट की तरह कार्य करने वाले देवरिया गांव के शेरशाहवादी समुदाय की महिलाएं सुंदर पंखों व चादर के अलावा अनाज के भंडारण से लेकर पशु पक्षियों के पालन में हर जगह कल्पनाशीलता व स्वच्छता का अनुपम नमूना प्रदर्शित करती हैं।
गांव की महिला हुस्न आरा खातून कहती हैं कि रंगीन पंखा व चादर आदि बनाने में मेहनत तो लगता है। लेकिन यह घर की जरूरत है, इसीलिए बनाना ही पड़ता है। ग्रामीणों की मानें तो यह कला पारंपरिक है। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। मुशकुरा, मुन्नी व सुवेरा खातून कहती हैं कि समुदाय की छोटी महिलाएं अपने से बड़ी औरतों से सीखती हैं। सारा कारोबार एक विरासत के रूप में चला आता है।
इसे बना कर बेचती क्यों नहीं? इस सवाल पर रेलवे में मजदूरी करने वाले प्रवासी श्रमिक अकबर हुसैन कहते हैं कि कौन देखता है? कहां बेचेंगे? प्रशासन या नेता किसी को फुरसत नहीं है। अकबर के अलावा मो. रफी, जहूर आलम, मंजूर हुसैन, मो. मोहर्रम आदि इस बात पर एकमत थे कि महिलाओं को समूह बना कर उन्हें आर्थिक मदद दी जाए तथा उनके उत्पादों को बाजार से जोड़ा जाए तो यह गांव के लोगों के लिए बड़ा आर्थिक संबल हो सकता है।

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