Monday, June 20, 2011

जल प्रबंधन के अभाव में मार खा रही खेती


डा.अशोक झा, अररिया : जिले से होकर बहने वाली नब्बे प्रतिशत नदियां नेपाल से होकर आती हैं। नेपाल में इनके जल का सुंदर प्रबंधन कर खेती में नई जान फूंक दी जाती है, लेकिन हम नदियां के रास्ते सारे पानी को केवल बहते हुए देखते रहते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि बेहतर प्रबंधन की वजह से नेपाल की तराई में फसलें लहलहाती हैं, लेकिन यहां या तोसूखा पड़ा रहता है या फिर फसल पानी में डूबी रहती है।
वक्त की जरूरत बन रहा जल संरक्षण
खेतों में सिंचाई व पीने के पानी की कमी का सामना कर रहे अररिया जिले में जल संरक्षण वक्त की जरूरत बनता जा रहा है। जिले में बड़ी संख्या में बन रही सड़कों के लिये मिट्टी भराई के क्रम में निर्माण कंपनियों ने नदी की मृत धाराओं में छोटे छोटे तालाब बना कर एक नई राह भी दिखाई है।
भूगर्भीय जल के अधिक दोहन से हो रहा जलसंकट
जल प्रबंधन में पिछड़ने का एक भीषण कुपरिणाम यह सामने आ रहा है कि गर्मियों के सीजन में अररिया जल संकट की मार झेलने लगता है। अधिकतर गांवों में भूगर्भीय जल का स्तर पांच से पंद्रह फूट तक नीचे चला जाता है। इस साल भी गर्मियों के शुरू में ही नरपतगंज, भरगामा व रानीगंज प्रखंड में एक दर्जन से अधिक नदियां सूख गयीं तथा हजारों चापाकलों में पानी का लेयर कई फीट नीचे चला गया। पानी को ले कर जिले के पश्चिमी हिस्से में हाहाकार जैसी स्थिति हो गयी। हालांकि शुरुआती बरसा ने स्थिति में जल्दी ही सुधार ला दिया।
पानी का यह संकट केवल पश्चिम क्षेत्र में ही नहीं है। जोकीहाट व अररिया प्रखंड के गांवों में पहले ढेर सारे जलकर थे। कुर्साकाटा व फारबिसगंज के गांवों में भी की बड़ी संख्या में कुदरती जलाशय थे। इन जलाशयों के जल का उपयोग जूट सड़ाने, गेहूं व मक्का की फसल की सिंचाई व मछली उत्पादन के लिए होता था, लेकिन बाढ़ के पानी के साथ आने वाली गाद व सिल्ट के कारण तकरीबन सारे कुदरती जलाशय भथ गए। इसका परिणाम सिंचाई के लिए पानी के अभाव तथा मछली उत्पादन में कमी के रूप में सामने आया है। अररिया के गांव बाजार अब आंध्र से आने वाली मछलियों पर ही आधारित हैं।
तेजी से सिमट रहे प्राकृतिक जलाशय
भूतल पर स्थित प्राकृतिक जलाशय तेजी समाप्त हो रहे हें। जहां चाप या चौर है भी वहां आइकार्निया वनस्पति के कारण उनका अस्तित्व समाप्त हो रहा है। इधर, हरित क्रांति के आगमन के बाद किसानों द्वारा अंडरग्राउंड जल के अत्यधिक दोहन के कारण अब हर साल गर्मी के सीजन में जल संकट सामने आ जाता है।
जिले के चातर, सिनवारी, बेलै, पोठिया, खबासपुूर, रमै, उखवा फुटुक चाप सहित कम से कम एक दर्जन कुदरती जलाशय समाप्त हो गए हैं। इसका खराब असर जिले के पर्यावरण पर पड़ रहा है।
पथनिर्माण कंपनियों ने दिखाई जल संरक्षण की नई राह
जिले में कार्यरत सड़क निर्माण कंपनियों ने जल संरक्षण के मामले में एक नई राह दिखाई है। फोर लेन व अररिया सुपौल स्टेट हाइवे निर्माण के क्रम में मरिया नदियों के तल से मिट्टी निकालने के कारण धारा में जलाशय बन गये हैं। बारिश के बाद जलाशय में भरपूर पानी और उसमें भरपूर मछली। किसानों ने इस पानी का उपयोग गेहूं पटवन के लिए किया। किसानों का मानना है कि ऐसे जलाशय बनाने के लिए सरकार व प्रशासन की ओर से पहल व वित्तीय मदद की जाए तो किसानों की माली हालत में बेहद सुधार हो सकता है।

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