Thursday, February 9, 2012

समाज को श्रीकृष्ण के गीता ज्ञान की जरूरत: विश्वंभरा



फारबिसगंज(अररिया) : मानव स्वार्थ की अंधी दौड़ में इतना आगे बढ़ गया है कि उसने अपने देश के अस्तित्व को भी अनदेखा कर दिया है। वह भूल गया है कि देश के अस्तित्व के साथ ही उसका अस्तित्व जुड़ा हुआ है। यह बातें सुश्री विश्वम्भरा भारती ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के आठवें दिन कथा प्रसंग में कही। उन्होंने कहा कि आज देश संकट में है और अगर देश संकट में है तो व्यक्ति सुरक्षित कैसे हो सकता है। हमारे शरीर के अगर किसी अंग में चोट लग जाये तो शरीर के अन्य अंग कैसे उसकी रक्षा के लिए दौड़े चले आते हैं। अगर हमें शिरोवेदना हो तो क्या हमारे हाथ हमारे सिर की रक्षा के लिए आगे नहीं बढ़ेंगे। यह देश ही हमारा शरीर है। अगर इस शरीर का कोई अंग खतरे मे है और हमें दुख नहीं होता तो हम फिर मुर्दे के समान हैं। देश को निष्क्रिय नहीं अपितु सक्रिय सज्जन लोगों की जरूरत है जो देश के लिए कुछ करने का जज्बा रखते हों। आज यह भूमि सज्जन लोगों की बांट जोह रही है। आज समाज को जगाने की जरूरत है। कथा प्रसंग के दौरान साध्वी जी ने बताया कि प्रभु श्रीकृष्ण जी ने भौमासुर का उद्वार कर समस्त बंदिनी स्त्रियों को अपने कुल का गौरव दान में दिया। प्रभु जानते थे कि अगर स्त्री असंस्कृत बनती है तो समाज में वैसे ही वर्णसंकर पैदा हो जाते हैं। समाज को विनाशकारी संभावना से बचाने के लिए प्रभु ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया। उस समय समाज सोया हुआ था। किसी ने उन बंदिनी स्त्रियों को छुड़ाने का प्रयास नहीं किया। लेकिन यह कार्य मात्र प्रभु ही कर पाये। प्रभु की महानता को न जानकर मानव समाज आज तक उन पर आक्षेप करता रहा है जिस दिन उन्होंने अपने घट में ईश्वर को जान लिया उस दिन उनका सिर स्वत: ही प्रभु के आगे झुक जायेगा। अगर संपूर्ण आर्यावर्त को धधकती वैराग्नि से बचाना है तो उन्हें श्रीकृष्ण के सिद्धातों को फिर से अपनाना होगा। आज श्रीकृष्ण के गीता ज्ञान की मानव समाज को बहुत जरूरत है।

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