Thursday, March 1, 2012

समाप्त हो रही गुरु शिष्य की अनूठी परंपरा


फारबिसगंज (Forbesganj Araria) : विद्यालयों में विद्यार्थियों से लेकर शिक्षकों की भीड़ तो बढ़ी है, लेकिन नैतिक मूल्यों में हृास भी देखा जा रहा है। सबसे बड़ी चिंता शिक्षक और छात्र के बीच सदियों पुराने संबंध में पड़े खटास को लेकर है। गुरु शिष्य की परंपरा पर तो जैसे ग्रहण लग गया है। विद्यालयों में शिक्षकों के खिलाफ विद्यार्थियों में आक्रोश फुट रहा है जो विद्यालयों से लेकर सड़कों तक स्कूली बच्चों के प्रदर्शन के रूप में आए दिन देखने को मिल रहा है। सेवानिवृति की दहलीज पर खड़े अनेकों बुजुर्ग शिक्षक किसी तरह बची हुई नौकरी पूरा कर स्कूलों से निकल जाने के इंतजार में है। विभिन्न सरकारी विद्यालय राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। जहां संविदा पर बहाल नये युवा शिक्षक पुराने अनुभवी शिक्षक विद्यालय शिक्षा समिति के अध्यक्ष सचिव, सदस्य सहित स्थानीय लोग अपना अपना स्वार्थ सिद्धि को लेकर लगातार खींचतान में लगे हुए हैं। इन्हीं सब के बीच विद्यार्थियों भी अपने अधिकार को लेकर अब विरोध भी दर्ज करा रहे हैं। फारबिसगंज के सिमराहा मध्य विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा विद्यालय प्रबंधन के खिलाफ मध्याह्न भोजन, पोशाक राशि, पुस्तकालय, शैक्षणिक भ्रमण, व्यवस्था आदि को लेकर पिछले दिनों सिमराहा थाना का घेरा कर प्रदर्शन किया था। नरपतगंज, भरगामा, बथनाहा सहित दर्जनों जगहों पर स्कूली बच्चों द्वारा विभिन्न समस्याओं को लेकर विरोध प्रदर्शन किया जाता रहा है। अंबेडकर आवासीय विद्यालय में तो शिक्षक के साथ मारपीट तक की गयी। एक सेवानिवृत शिक्षक मांगन मिश्र बताते हैं कि शिक्षकों से लेकर विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों का हृृास हुआ है। बच्चों में अब शिक्षकों के प्रति पहले जैसा आदर भाव नहीं रह गया है। जबकि शिक्षकों ने भी अपनी करतूतों से गुरु की गरिमा को ठेस पहुंचायी है। शिक्षक अब सिर्फ शिक्षक नहीं रहे बल्कि वे एक ठेकेदार, रसोईया, व्यापारी की भूमिका निभा रहे हैं। जिन्हें स्कूल भवन बनाने, अच्छा अनाज सब्जी खरीदकर पौष्टिक भोजन भी बनाना है। जहां लाखों रूपये का कारोबार होगा वहां के कई शिक्षक अनियमितता की शिकायतों की आंच में भी जलते रहे हैं। बच्चों को अनाज का बंदरबांट कई स्तर पर हुआ तो बच्चों ने ही खिलाफत की। कई जगहों पर शिक्षक और छात्रा के अनैतिक संबंधों को लेकर भी गुरु शिष्य के सम्मान से भरे मजबूत संबंध को धक्का लगा।
एक सरकारी विद्यालय के प्रधानाचार्य ने कहा कि पहले जैसा स्कूलों में खुशनुमा माहौल नहीं है। भय के माहौल में काम करना पड़ रहा है कि कहीं किसी योजना में गड़बड़ी न हो जाये। एक शिक्षक ने बताया कि सरकारी योजना की लूट खसोट में विद्यालय संचालन से संबंध में रखने वाले सभी सदस्यों की भूमिका रहती है। लेकिन अब बच्चे विरोध भी कर रहे है। इस स्थिति में बच्चों के मन में आखिर कैसे शिक्षक के प्रति आदर का भाव बचा रहेगा। नौबत यह है कि स्कूलों से चावल बेचने के मामले आए दिन पकड़े जा रहे हैं। ऐसे में अभिभावक भी नाराज और बच्चे भी नाराज। चारों तरफ नैतिकता का पतन है। पहले गुरु बच्चों को सही रास्ते पर लाने के लिए पिटाई करते थे तो अभिभावक की भी रजामंदी रहती थी। अब स्कूल में बच्चों को पीटना कानूनन अपराध है।
बहरहाल शिक्षक और विद्यार्थियों अब एक दूसरे पर दोषारोपण करते दिखते हैं। इसे बचाने का प्रयास सामाजिक स्तर पर भी नहीं दिख रही है। शिक्षकों पर छात्रों द्वारा मारपीट किया जाना विद्यालयों के माहौल की सबसे खराब स्थिति को दर्शा रहा है।

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