अररिया : मां बाप किसी भी इंसान की जिंदगी की सबसे खूबसूरत नियामत होते हैं। लेकिन पारंपरिक रूप से बच्चों की पहचान पिता से ही होती है। पिता के साथ बच्चों के रिश्ते भौतिक रसायन के आयोनिक बांड की तरह होते हैं, जिससे निकलने वाली ऊर्जा संतान को सारी जिंदगी ऊर्जान्वित करती रहती है।
मैला आंचल का समाज सदियों से पितृ सत्तात्मक समाज रहा है और परिवार के मुखिया के रूप में पिता को ही जाना पहचाना जाता रहा है। फादर्स डे पर पिता की महत्ता को रेखांकित करते हुए समाज शास्त्री डा. सुबोध कुमार ठाकुर ने बताया कि वे आजीवन किसी व्यक्ति के लिए शक्ति पुंज की तरह कार्य करते हैं। किसी भी बच्चे का संस्कार उसके पिता से ही कैरी आन होता है। पिता आखिर पिता होते हैं।
इस इलाके में पिता की महत्ता को लेकर कई मुहावरे प्रचलित हैं, जिनसे समाज में उनका स्थान रेखांकित होता है। लोग कहते हैं कि बढ़े पूत पिता के धर्मे, खेती बढ़े अपने कमर्ें, यानी पुत्र का सामाजिक महत्व उसके पिता के कार्यो पर निर्भर करता है। किसी पिता के लिए उसका पुत्र भावी फैमिली हेड की तरह होता है, लेकिन यहां के लोग मानते हैं कि रिश्तों की असल बांडिंग बेटी के साथ अधिक होती है। यहां की एक और कहावत बताती है कि पिता जैसे चेहरे वाली बेटी अधिक भाग्यशाली होती है।
लेकिन यह भी एक कड़ुआ यथार्थ है कि पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव में पिताओं की जगह अब ओल्ड होम में होती जा रही है। हालांकि इस अवधारणा को अब भी यहां जगह नहीं मिली है।
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