बसैटी(अररिया) : एक ओर सरकार पुराने धरोहरों के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर रही है जबकि जिले का प्रसिद्ध ऐतिहासिक बसैटी का शिव मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। रानीगंज प्रखंड के बसैटी स्थित ऐतिहासिक शिवमंदिर लगभग सवा दो सौ वर्ष पुराना है। जहां हर साल सावन मास व शिवरात्रि के अवसर पर लाखों लोग अपनी मनोकामना के साथ जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं लेकिन उक्त मंदिर के विकास के लिए आज तक कोई सकारात्मक प्रयास नहीं किया जा सका है। जबकि मंदिर के नाम काफी जमीन महारानी इंद्रावती ने दान स्वरूप दिया था जिसे आज अतिक्रमणकारी जोत आबाद कर अपना विकास कर रहे हैं। मंदिर के विकास के लिए पहले एक कमेटी भी बनी थी लेकिन कालांतर में उसके कुछ सदस्य स्वर्ग सिधार गये जिसके बाद यह कमेटी शिथिल और निष्क्रिय हो गयी। बाद में ग्रामीणों की पहल पर धार्मिक न्यास परिषद के किशोर कुणाल ने वहां नयी कमेटी बनाने का निर्देश भी जिला प्रशासन को दिया लेकिन आज तक न तो नई कमेटी का ही गठन हुआ और न ही मंदिर की भूमि को अतिक्रमण कारियों के कब्जे से मुक्त कराया गया। अगर मंदिर की भूमि से प्राप्त आय को मंदिर के विकास पर लगाया जाय तो यह धरोहर एक दर्शनीय स्थल बन सकता है। एक रणनीति के तहत यदि सहरसा स्थित मत्स्यगंधा मंदिर की तर्ज पर इसको विकसित किया जाय तो यह शहर का प्रमुख पर्यटन स्थल भी बन सकता है। ग्रामीणों की माने तो मंदिर की देखरेख व जीर्णोद्धार के लिए प्रशासनिक स्तर से अब तक कोई भी पहल नहीं किया गया, जिससे इस ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
ग्रामीण बताते हैं कि पहुंसरा की महारानी इंद्रावती ने सन 1797 में उक्त मंदिर का निर्माण कराया था। महारानी जब तक जिंदा रही मंदिर काफी चर्चा में रहा। किंतु कालांतर में प्रशासनिक स्तर पर मंदिर के विस्तार के लिए कोई पहल नहीं किए जाने से मंदिर का अस्तित्व संकट में पड़ गया है जिससे ग्रामीण नाखुश हैं।
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