अररिया: माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून को भले ही संवैधानिक दर्जा दे दिया गया हो, पर इस एक्ट में विहित प्रावधानों को पालन किसी स्तर पर नही हो रहा है। चाहे वो सीओं के आरक्षण का मामला हो या फिर नामांकन के वक्त स्कूल का स्थानांतरण प्रमाण पत्र या जन्म प्रमाण की अनिवार्यता का विषय। अररिया जिले के स्कूलों का फैसला सरकार के आदेश पर भारी प्रतीत होता है। इस मामले में प्राइवेट स्कूल अग्रिम पंक्ति में खड़े है।
सरकार के द्वारा पहले नामांकन के समय जन्म प्रमाण पत्र या टीसी तथा अन्य समकक्ष कागजातों की अनिवार्यता संबंधी आदेश जारी किया था। परंतु बाद में एक बार फिर इस आदेश में कुछ संशोधन किया गया। सरकारी स्कूलों में तो बिना टीसी के नामांकन नही करने संबंधी निर्देश प्राप्त है, परंतु इस मामले में मात्र खानापूरी ही की जाती है। इस कारण सरकारी स्कूलों के कक्षा में आम तौर पर एक साथ एक वर्ग में अलग-अलग उम्र के बच्चे दिखाई देते हैं। यह समस्या का मूल कारण है टीसी या बर्थ सर्टिफिकेट की अनिवार्यता को समाप्त करना। अगर शिक्षा विभाग के अधिकारी स्कूलों को पड़ताल करें तो सारी सच्चाई सामने आ जायेगी। परंतु विडंबना यह है कि अधिकारी स्कूलों का निरीक्षण तो करते हैं पर इस मुद्दे पर पहल भी नही कर पाते हैं। प्राइवेट स्कूलों में तो ऐसे नियम ताक पर ही रख दिए जाते हैं। एक भी प्राइवेट स्कूल बच्चों के नामांकन के वक्त न तो बर्थ सर्टिफिकेट की खोज करता है और न ही टीसी का। गैर सरकारी स्कूलों में नामांकन सिर्फ पैसों के बल पर ही होता है। फारबिसगंज स्थित भद्रेश्वर के मिथिला पब्लिक स्कूल जैसे स्कूलों में भी जन्म प्रमाण पत्र या टीसी नही लिया जाता है। स्कूल की प्राचार्या पुतुल मिश्रा बताती है कि जन्म प्रमाण पत्र व टीसी को नामांकन के वक्त अनिवार्य नही माना जाता है। परंतु बिना जन्म प्रुफ के बच्चों का एडमीशन भी नही होता है। उन्होंने बताया कि बच्चे के अभिभावक इस संबंध में एक घोषणा पत्र देते हैं। वहीं गर्ल्स आइडियल एकेडमी की शिक्षिका नगमा अख्तर की माने तो कुछ ऐसा ही नियम उनके स्कूल में भी है। मोहिनी देवी मेमोरियल स्कूल, ईस्टर्न पब्लिक स्कूल आदि भी अभिभावकों से घोषणा पत्र लेकर ही नामांकन करता है। जबकि आदर्श मवि बाजार, आदर्श मवि ककुड़वा आदि के प्रधानाध्यापक का कहना है कि बिना टीसी के नामांकन नही लिया जाता है।
इस संबंध में माध्यमिक शिक्षा के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी बसंत कुमार ने कहा कि अनिवार्यता खत्म कर दिया गया है। लेकिन यह भी सच है कि इन कागजातों के बिना नामांकन होने पर एक ही वर्ग में अलग-अलग बच्चे पढ़ रहे हैं। श्री कुमार ने कहा कि जांच होने पर ऐसे मामले सामने आ सकते है।
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