अररिया : मैला आंचल में मनोरंजन के नाम पर अब अपसंस्कृति परोसी जा रही है। पारंपरिक लोक गाथाओं व गीत नाट्यों के धुन नहीं सुनायी देते। नैका बंजारा व विदापत विलुप्त हो चुके हैं। वहीं, खेलकूद के मामले में
भी हाल बदहाल है। प्रोत्साहन के अभाव में जिले की खेल प्रतिभा जंगल के फूल की तरह खिल कर जंगल में ही बिखर जाती हैं।
मनोरंजन: अश्लील व फूहड़ फिल्मों का प्रदर्शन धड़ल्ले से-
जिले में मनोरंजन के नाम पर अश्लील फिल्मों का धड़ल्ले से हो रहा है। सी ग्रेड की फिल्में हों तो एक बात है, यहां तो नाइट शो में ब्लू फिल्में भी दिखायी जा रही हैं।
मेलों के लिए विख्यात रहे अररिया जिले में नौटंकी जहां शहरी मध्यम वर्ग के मनोरंजन कर वैध साधन थी, वहीं, ग्रामीण इलाके में नैका बंजारा, बिहुला बिसहरी, दीना भदरी, सावित्री सत्यवान, घुघली घाटम, विदापत जैसे गीति नाट्यों का जोर था। इनसे न केवल स्वस्थ मनोरंजन होता था, जीवन के लिए जरूरी शिक्षा भी मिलती थी। लेकिन आधुनिकता के प्रवेश ने इस आंचलिक विरासत को छीन लिया है। अब ग्रामीण मेलों में अश्लील चित्रहार और बीएफ का तथा नेपाल सीमावर्ती गांवों में हौजी (जुअेबाजी)व कैसिनो का जोर है। वहीं, शहरी व ग्रामीण मध्यम वर्ग टीवी व डीवीडी के पास चिपक कर रह गया है।
सिनेमा घरों की हालत खस्ता - जिले के फारबिसगंज व अररिया सहित कुछ जगहों को छोड़ कर अन्य सभी स्थानों पर मनोरंजन के नाम पर भद्दा व खतरनाक मजाक हो रहा है। जमाना अब मल्टीप्लेक्स का आ गया है, लेकिन अररिया में आज भी टीन की छपरी, बांस की बल्ली व तिरपाल से बने सिनेमा घर अपना शो करते हैं।
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