Sunday, June 12, 2011

जन सुविधाओं के विकास में जिला फिसड्डी


-तीन चौथाई आबादी जाती है खुले में शौच
अररिया : सरकारी तंत्र भले ही सबकुछ ठीकठाकहोने का दावा करे, हकीकत यह है कि जन सुविधाओं के विकास के मामले में अररिया अब भी बेहद फिसड्डी है।
जिले के तीन चौथाई से अधिक परिवार खुले में ही शौच जाते हैं।
नतीजा: अधिकांश लोग पेट की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक जिले में जितनी खपत गेहूं की नहीं है, लोग उससे कहीं अधिक मूल्य की दवाएं खा लेते हैं।
वहीं, सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सुविधा तथा स्वच्छता जैसी मौलिक जन सुविधाओं की हालत भी यहां बेहद खस्ता बनी हुई है।
शुद्ध पेय जल अब भी एक सपना -
शुद्ध पेय जल जिला वासियों के लिए अब भी एक सपना है। सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाये जाने के बावजूद यहां शुद्ध पेय जल जैसी बेसिक सुविधा भी नसीब नहीं। एकाध अपवाद को छोड़ जिले के तकरीबन सभी चापा कलों से मिलने वाले पानी में आयरन व हानिकारक बैक्टीरिया प्रचुर परिणाम में हैं। पीएचइडी द्वारा करवायी गयी जांच में भी इस बात की पुष्टि होती है। लेकिन ग्रामीण स्तर पर चापाकलों में लौह निवारण प्लांट लगाने का कार्य अब तक नहीं पाया है।
कुछ समय पहले चलायी गयी कोसी अमृत पेय योजना पूरी तरह फ्लाप हो गयी है।
कार्यपालक अभियंता लाल बाबू महतो की मानें तो जिले में आइआरपी सेट लगाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।
तीन चौथाई आबादी खुले में जाती है शौच - अररिया जिले की तीन चौथाई आबादी खुले में शौच जाती है। जिस कारण लोग पेट संबंधी नाना प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। अररिया से ग्रामीण क्षेत्र की ओर जाने वाली किसी भी सड़क पर चले जाइये, शौच जाने वालों की कतार खड़ी मिलेगी।
सार्वजनिक शौचालयों की घोर कमी -
जिले में कुछ स्थानों पर सार्वजनिक शौचालय बनाये गये थे। लेकिन प्रशासन की ढिलाई के कारण वे सभी बंद पड़े हैं। अररिया सदर अस्पताल में बने शौचालय में सफाई कर्मियों ने अपना डेरा डाल रख है। पलासी सहित अन्य प्रखंड मुख्यालयों का भी यही हाल है।
वहीं, स्कूल तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर बने अधिकांश शौचालय भ्रष्टाचार के कारण बनने से पहले ही बंद हो गये।
जिले में अब तक नही बन सका एक भी 'निर्मल ग्राम'-
बड़ी राशि व्यय हो जाने के बावजूद जिले में एक भी गांव निर्मल ग्राम नहीं बन सका है। हालांकि पीएचइडी के कार्यपालक अभियंता लाल बाबू महतो का कहना है कि
वे इस दिशा में सतत प्रयत्‍‌नशील हैं।
इस संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार लाभुकों के प्रारंभिक सर्वे के नाम पर ही पचपन लाख से अधिक की राशि खर्च कर दी गई। जिले में संपूर्ण स्वच्छता अभियान के बावजूद अधिकतर लोग शौचालयों से वंचित हैं।
जानकारों का मानना है कि शौचालय निर्माण की तकनीक के संबंध में अगर ग्रामीणों को जागरूक बनाया जाय तो अधिकतर लोग स्वयं ही शौचालय बना लेने में सक्षम हैं। लेकिन यहां तो प्रक्रियागत जटिलता व भ्रष्टाचार ही इतना अधिक है कि लैट्रिन बनाने के नाम पर काम कम हल्ला ज्यादा होता है।
जन सुविधाओं के मामले में शहर सर्वाधिक फिसड्डी -
जिले में तीन शहर हैं। जन सुविधाओं के मामले में तीनों बेहद पिछड़े हैं। शहरवासियों को तो आवागमन के लिए अच्छी सड़कें भी नसीब नहीं। कूड़े कचरे के ढेर के बीच जीवन बिताना बाध्यता बन गयी है।
जिला मुख्यालय होने के बाद भी अररिया में कचरा निष्पादन केंद्र नहीं बन पाया है। राज्य सरकार ने इसके लिए साठ लाख से अधिक की राशि भी आवंटित कर रखी है,लेकिन अधिकारियों की ढिलाई के कारण कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा है।

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