Sunday, June 12, 2011

श्रमदान से बना डाला परमान पर पुल


-तीन दर्जन से अधिक गावों की जिंदगी पर पड़ा है गुणात्मक प्रभाव
अररिया : जो काम करोड़ों की लागत से नहीं हो सकता, वह आपसी तालमेल व श्रमदान से संभव हो जाता है। इस बात को साबित कर दिखाया है खबासपुर पंचायत के वासियों ने। मुखिया की पहल व नेतृत्व में गांव वालों ने कंक्रीट व बांस बल्लियों की मदद से पहले अहरी नदी व अब परमान नदी पर शानदार पैदल पुल बना डाले हैं। अब कौआचांड़ घाट पर नदी पार करने के लिए किसी को तैरना नहीं पड़ता।
कौआचांड़ किसी गांव का नाम नहीं है। बल्कि फारबिसगंज, अररिया व कुर्साकाटा प्रखंडों के जल जमाव वाले गांवों को मिला कर बनने वाले इलाके को गांव वासी कौआचांड़ कहते हैं। पहले यह कहावत थी कि खोलो धड़िया उतरो पार, इस गांव का यही व्यवहार, ये है भाई कौआचांड़। किसी भी तरफ से कौआचांड़ जाइये, बगैर तैरे गुजारा नहीं। लेकिन खबासपुर पंचायत के मुखिया कुमार नाथ झा की पहल ने कौआचांड़ सहित तीन दर्जन गांवों की जिंदगी आसान बना दी है।
उन्होंने दो सौ फुट चौड़े परमान नदी के पाट में गांववालों की मदद से सीमेंट के कई ह्यूम पाइप डाले तथा नदी तल में गला कर उन्हें कंक्रीट से भर दिया और फिर उसके ऊपर बांस की चचरी डाल दी। मुखिया श्री झा कहते हैं कि इस काम के लिए सब कुछ जन सहयोग से हुआ। एक पैसा सरकारी नहीं। मैं आगे रहा और साथ में रहे पंचायत के हजारों लोग।
उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में चचरी की जगह कंक्रीट के ही गर्डर डाल दिये जायेंगे, ताकि पुल में स्थायित्व बना रहे। मुखिया ने बताया कि इस पुल को बनाने में अब तक तीन लाख रुपये व्यय हुए हैं और सारी राशि जन सहयोग से ही इकट्ठा की गयी है।
कबिलासा गांव की जयमाला देवी कहती हैं कि पुल से पब्लिक को बहुत फायदा हुआ है। पहले गांव में सब्जी उपजाते थे तो वह गांव में ही रह जाता था। लेकिन पुल के बन जाने से सब्जी का अच्छा पैसा मिल रहा है। खबासपुर के गौरी सिंह ने बताया कि नाव से टपने की हड़बड़ी में पूरब पार में काम करने वाले मजदूर दो बजे ही काम छोड़ कर निकल जाते थे, जिससे किसानों को घाटा होता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होता।
कौवाचांड़ के देवेंद्र मंडल, अमरेंद्र कुमार सिंह, संजय कुमार, गौरीशंकर, शिव शंकर, विजय, राजकिशोर, गोपी व नक्षत्र जैसे युवकों की मानें तो पुल के बनने से अब गांव तक जाने में कोई दिक्कत नहीं है। देवेंद्र मंडल के शब्दों में: अब हम लोग जूता मौजा पहन कर गांव चले जाते हैं।

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