कुर्साकांटा (अररिया) : सीमावर्ती क्षेत्र के लगभग 70 प्रतिशत आबादी खेती पर ही आधारित है। लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण किसान इससे भी विमुख होने को विवश हैं। किसानों को अपनी फसल का लागत मूल्य भी नही मिल पा रहा है,ऐसे में खेती घाटे का सौदा बन कर रह गयी है।
ज्ञात हो कि क्षेत्र की मुख्य फसल धान है। क्षेत्र में धान का उत्पादन भी काफी हुआ है किंतु बाजार में उसका मूल्य आज की तारीख में मिलने वाले एक बोरा डीएपी खाद के बराबर भी नहीं है। बाजार में पांच सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान की बिक्री हो रही है। जबकि खेती में जोताई, कोराई, खाद, बीज और मजदूरी से लेकर कटनी तक में एक एकड़ में करीब चार से पांच हजार रूपये खर्च आते हैं। लेकिन उसके अनुपात में बाजार में धान का मूल्य काफी कम है जिससे किसानों में आक्रोश व्याप्त है। एक तरह खाद बीज की कीमतें आसमान छूती जा रही है दूसरी ओर किसानों को फसल का उचित मूल्य नही मिल रहा है। भाजपा के किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष नारायण झा ने कहा कि वास्तव में किसानों को उसके फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। उधर, पंचायतों की बात दूर प्रखंड मुख्यालय में भी एक भी क्रय केन्द्र नहीं होने के कारण किसान कम कीमत पर फसल को बेच रहे हैं। वहीं पूर्व प्रमुख ओम प्रकाश चौधरी ने कहा कि फसलों का उचित मूल्य नही मिलने के कारण किसान फसलों में आग लगा रहे हैं। किसान विरेन्द्र कुमार, अरुण शर्मा, सुगमलाल मंडल आदि ने बताया कि गत वर्ष की तुलना में खाद और बीज की कीमत दोगुनी हो गयी है और धान की कीमत आधी। किसानों को गेहूं और मकई के खेती के लिए फसलों के कम कीमत होने के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
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