Monday, November 14, 2011

कृषि के पारंपरिक साधन नहीं छोड़ रहे कृषक


नरपतगंज (अररिया) : ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी अधिकांश किसान बैल से ही खेतों की जुताई को प्राथमिकता दे रहे हैं। ऐसे मान्यता है कि बैल भगवान शंकर की सवारी है और जब उसके पांव खेतों में पड़ते हैं तो उपज बढ़ता है। हालांकि आज वैज्ञानिक युग में उक्त बातों का कोई आधार नहीं है बावजूद ट्रैक्टर से ज्यादा हल-बैल के सहारे नरपतगंज में किसान खेतों की जुताई कर रहे हैं। इसके पीछे शायद टै्रक्टर व कृषि यंत्रों का मंहगा होना भी एक कारण है। कृषक बबलू सिंह, जितेन्द्र यादव, रामनारायण यादव, मो. हाफिज, राकेश, मोहन राय आदि बताते हैं कि वे लोग खेतों की जुताई व बुआई हल से ही करते हैं। उन लोगों का कहना है कि वे लोग कृषि के साथ पशुपालन भी करते हैं। इसलिए बैल की उपलब्ध काफी है। इसके अलावा डीजल व कृषि यंत्रों के दाम इतने अधिक हैं कि उसे खरीदना उन लोगों के बस में नहीं होता। साथ ही बैल का गोबर व मूत्र खेतों में गिरता है तो वह उर्वरक का काम करता है। जबकि ट्रैक्टर से गिरने वाला मोबिल, डीजल और निकलने वाला धुआं भूमि और वायु को प्रदूषित करने का काम करता है।
हालांकि इस संबंध में प्रखंड कृषि पदाधिकारी राम प्रवेश यादव कहते हैं कि छोटे-छोटे किसान अब भी बैल से खेती की जुताई करते हैं। हालांकि किसानों को आधुनिक कृषि उपकरण के प्रयोग के लिए जागरूक किया जा रहा है तथा उन्हें अनुदान भी दिया जा रहा है।

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