Wednesday, July 4, 2012

मिनी चंबल में कारगर हो रही मोहब्बत की जुबान


पलासी (अररिया) : जो काम लाठी गोली व हथियारों की मारक जुबान नहीं कर सकते, वह मोहब्बत भरे दो चार बोल आराम से कर देते हैं। कम से कम पलासी थाने में तो यह बात सही साबित होती दिख रही है। यहां पुलिस ने लाठी-डंडे की भाषा में बात करने वाली अपनी छवि से इतर जन मित्र की छवि पेश कर तकरीबन एक दर्जन जरायमपेशा युवाओं को मुख्यधारा में वापस लाया है। पलासी पुलिस ने कथित मिनी चंबल के नाम से जाना जाने वाले दिघली गांव के आठ कुख्यात अपराधियों को प्रेरित कर समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए बीते वर्ष 2011 की 15 दिसंबर को अररिया के एसपी के समक्ष आत्मसमर्पण करवाया। जिसमें चमरू, यासीन, अजीम, सदरो, कालू, इसमाइल, कैला व इस्लाम आदि शामिल थे। इन पर पलासी थाना के अलावा किशनगंज जिले के विभिन्न थानों में डकैती, लूट, आ‌र्म्स एक्ट सहित अनेक जघन्य कांड दर्ज थे। वहीं पलासी बस्ती का रहने वाला कुख्यात डकैत मो. हबीब उर्फ हबुआ को पलासी पुलिस व अररिया एसपी ने सहयोग देकर मुख्यालय के बाजार में आलू-प्याज की दुकान खुलवायी थी। यह बात अलग है कि कई कारणों से करीब एक सप्ताह पूर्व हबुआ की हत्या कर दी गयी, लेकिन अपराध की बीहड़ दुनिया में लगातार भटकते युवाओं को पुलिस के प्यार भरे बोल शायद अधिक अच्छे लगे। पुलिस कप्तान शिवदीप लांडे के व्यक्तित्व व व्यवहार से प्रेरित और जरायमपेशा जिदंगी की हकीकत से रूबरू होकर दिघली गांव के कुख्यात अपराधी मो. कासिम उर्फ बम्बईया ने आत्मसमर्पण की इच्छा जतायी। उसने सोमवार को अररिया एसपी के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। आत्म समर्पण के दौरान बंबईया ने कहा: ..नबी का दामने रहमत पकड़ लो ऐ जहां वालो, रहे जब तक ये हाथों में चलन मैला नहीं होता।
इधर, पुलिस की इस पहल की आम लोगों द्वारा भरपूर सराहना की जा रही है। पुलिस के इस बदले व्यवहार को कुछ लोग जहां सुशासन का असर मान रहे हैं तो कईयों का कहना है कि यह बदलते समाज से सामंजस्य बिठाने को पुलिस की सोच का बदलाव है।
वहीं, इस बाबत थानाध्यक्ष आरबी सिंह ने बताया कि थाना क्षेत्र के कई अन्य कुख्यात अपराधियों को भी समाज की मुख्य धारा से जोड़ने हेतु प्रयास किया जा रहा है। जिसका सार्थक नतीजा जल्द आने की उम्मीद है।

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