Wednesday, July 4, 2012

न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप पर एसएचओ को मिली हिदायत


अररिया : अररिया के सीजेएम संपूर्णानंद तिवारी ने न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप के आरोप में भरगामा थानाध्यक्ष को कोर्ट में सदेह उपस्थित कराकर भविष्य में ऐसी गलती नहीं करने की हिदायत दी है।
यह मामला भरगामा थाना कांड संख्या 38/05 से जुड़ा है। गम्हरिया निवासी मो. कमरूद्दीन ने मो. रफीक समेत कई लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी थी। इस मामले में अभियुक्तों पर सूचक के घर धावा बोलकर मारपीट करने व घर का सामान ले जाने का आरोप था।
अनुसंधानकर्ता ने भादवि की धारा 341, 323, 447, 380/504 के तहत दर्ज इस मामले का अनुसंधान किया तथा अपने अनुसंधान में उक्त घटना को धारा 341, 323, 427, 426, 504/34 के तहत आरोपियों के खिलाफ सत्य पाया। साथ हीं उन्होंने अपने अनुसंधान में आरोप को सत्य पाते हुये दप्रस की धारा 468 के निहित प्रावधान के तहत इस मामले को अनुसंधानकाल बाधित होने का भी उल्लेख कर दिया तथा अंतिम प्रतिवेदन संख्या 165/11 दिनांक 30 नवंबर 11 के तहत अपना अनुसंधान बंद करते हुए अदालत में दाखिल कर दिया।
इस बात पर सीजेएम श्री तिवारी ने सख्त रूख अपनाया तथा अनुसंधानक सअनि रामदेव यादव को कारण बताओ नोटिस जारी की। साथ हीं प्राथमिकी अभियुक्तों के विरुद्ध घटना सत्य पाने के बावजूद अंतिम प्रतिवेदन के कंडिका 16 में दप्रस की धारा 468 के निहित प्रावधान के तहत अनुसंधान काल बाधित होने के उल्लेख को थानाध्यक्ष द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप माना। मामले में थानाध्यक्ष को कोर्ट में सदेह हाजिर होने का आदेश दिया।
तत्पश्चात अनुसंधानकर्ता की नींद खुली तथा वे 4 जुलाई को कोर्ट में हाजिर हुए।
सीजेएम ने अनुसंधानकर्ता बने थानाध्यक्ष को भविष्य में न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप नही करने की चेतावनी दी तथा अपने संचिका में इस मामले का भादवि की धारा 341, 323, 443, 427, 380, 504 के तहत संज्ञान भी ले लिया है।

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