Friday, October 29, 2010

मानवाधिकार आयोग में जाने की तैयारी में सेक्टर पदाधिकारी

अररिया। बीते दिनों संपन्न हुए प्रथम चरण के विधानसभा चुनाव में प्रतिनियुक्त सेक्टर पदाधिकारी सह जोनल मजिस्ट्रेट ने उन लोगों को मिलने वाले अति न्यूनतम पारिश्रमिक पर आपत्ति जताते हुए मानवाधिकार आयोग में जाने की चेतावनी दी है। साथ ही मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष मामले को भेजा है। मुख्य चुनाव आयुक्त सहित भारत निर्वाचन आयोग के सचिव तथा अंडर सेक्रेटरी को एक आवेदन प्रेषित कर प्रतिदिन मिलने वाले मात्र 18 रुपये के मानदेय को मानवाधिकार के हनन का मामला बताया है। इस मामले में आवेदक सह सेक्टर पदाधिकारी आनंद लाल देव ने आयोग से न्याय करने का अनुरोध किया है।
मालूम हो कि चुनाव कार्य में लगे अधिकांश सेक्टर पदाधिकारी वित्त रहित कालेज के प्राध्यापक है जिनमें अधिकतर प्राध्यापकों को कालेज से मिलने वाली अनुदानित वेतन राशि तक नसीब नहीं हुआ है। ये प्राध्यापक टयुशन कर अपने परिवार का भरण पोषण करते है। लेकिन चुनाव कार्य में लगे रहने के कारण इनका टयूशन भी बंद हो गया है। इस दौरान चुनाव आयोग द्वारा सेक्टर पदाधिकारियों के लिए निर्धारित प्रतिदिन 18 रुपये की दर से एक माह तथा 21 दिन के लिए कुल 1150 रुपया में कुछ बढ़ोत्तरी करते हुए करीब 1475 रुपये का भुगतान मिला था। इसके अलावा करीब 325 रुपये मोबाइल खर्च के नाम पर मिला था। सेक्टर पदाधिकारियों को इस बात का मलाल है कि चुनाव में मतदान के समय मात्र दो दिन तक लगे रहने वाले पीठासीन पदाधिकारियो को 2050 रुपये भुगतान किया गया। जबकि रोजाना सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत करने वाले प्राध्यापक सह सेक्टर पदाधिकारियों को प्रतिदिन 18 रुपये मात्र। जबकि प्रतिदिन का उनका खर्च करीब दो सौ रुपये था। इस मामले को आ‌र्ब्जबर सहित डीएम के सक्षम कई बार उठाया गया था। बाद में केंद्रीय चुनाव आयोग तक इस मामले को ले जाया गया है। आयोग को प्रेषित आवेदन में कहा गया है कि मनरेगा के मजदूरों को भी 135 रुपये की दर से तथा कुशल कारीगर को 300 रुपये की दर से पारिश्रमिक दिया जाता है। फिर सेक्टर पदाधिकारियों वह भी वित्त रहित कालेजों के व्याख्याताओं को जिन्हें कालेज से एक रुपया नहीं मिलता है बल्कि उन्हे मात्र 18 रुपये प्रतिदिन पर कार्य करवाने का क्या औचित्य है। सेक्टर पदाधिकारियों को उचित मानदेय नहीं मिलने की स्थिति में इस मामले को मानवाधिकार आयोग, लेबर कोर्ट या न्यायालय में ले जाने की भी चेतावनी दी गयी है। मामले को असंगत और अति संवेदनशील मुद्दा बताते हुए न्यायोचित कदम उठाने की अपील की गयी है।

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