Friday, October 29, 2010

काली मेले में जीवन साथी खोजते हैं आदिवासी युवा

अररिया। आदिवासी समुदाय के युवक युवतियों के लिये वैवाहिक संबंध को ले प्रखंड क्षेत्र के कालाबलुआ गांव में हर वर्ष काली पूजा के अवसर पर लगने वाले एक दिनी मेले का ऐतिहासिक महत्व है। 10-10 कोस दूर के आदिवासी युवक-युवती अपने-अपने परिजनों के संग मेले में पहुंचते हैं तथा हजारों की भीड़ में अपनी पसंद के जीवन साथी को चुन विवाह सूत्र में बंध जाते हैं। इस वर्ष भी इस समुदाय के युवक-युवती इस मेले को लेकर काफी उत्साह है जो अपने जीवन साथी को इस मेले में पसंद करेंगे।
रानीगंज प्रखंड का कालाबलुआ गांव आज भी पुरानी ओर पारंपरिक लोक संस्कृति का उदाहरण देखने को मिलता है। काली पूजा के मौके पर यहां भव्य मेला लगता है। पूजा के तीसरे दिन मेले का नजारा ही कुछ और होता है। जब शाम ढलते मेले में हजारों की भीड़ इकट्ठा हो जाता है और मेले में तिल रखने क जगह नहीं होती है। अन्य बातों के अलावा इस एक दिनी मेले में आदिवासी युवक-युवतियों के लिए खास महत्व रखता है। क्योंकि यह एक ऐसा अवसर होता है जब वहां युवा अपनी मनपसंद के वर-वधु का चयन कर सदा के लिए एक-दूसरे के हो जाते हैं। अपने जीवन साथी चुनने को आयी युवक-युवती को स्नेहिल प्यार के इजहार की मौन स्वीकृति रहती है। रात ढलते-ढलते एक दूसरे को समझते हैं। चंद लम्हों में और फिर दोनों की शादी करा दी जाती है। यही कारण है कि इस मेले में जाने की तैयारी युवा अभी से आरंभ कर दी है। मित्र दोस्त, सखी-सहेली व परिजनों के संग युवा जोड़े मेले में एक दूसरे से अलग दिखते बनते हैं। मेले में हजारों की भीड़ रहती है।
इस मेले में आदिवासी समुदाय के युवा हीं नहीं पौढ़ जोड़े भी अपने पारंपरिक वेशभूषा में विभिन्न श्रृंगारों में सज कर आते हैं और मेले में दिखती है आदिवासियों की पारंपरिक सामुहिक नृत्य संस्कृति। इस मेले का एक पहलू यह भी है कि इस समुदाय के द्वारा बनाया जाने वाला देसी शराब व महुआ से बना खास शराब का सेवन अधिकांश आदिवासी ही नहीं हर आने जाने वाले लगभग सभी किये रहते हैं। प्रशासन की ओर से सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं रहने के कारण उचक्के व मनचले युवक भीड़ व अंधेरे का फायदा उठा कर युवतियों व महिलाओं के साथ बदसलूकी करते हैं।

0 comments:

Post a Comment