Saturday, October 30, 2010

रहमानी मकतब के नाम पर हुई लाखों की लूट

अररिया। एक ओर जहां सरकार लड़कियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की शिक्षा संबंधी योजनाएं अलग से चला रही है ताकि महिला साक्षरता दर को बढ़ाया जा सके, वहीं सर्वशिक्षा अभियान की उदासीनता व निष्क्रियता के चलते आज भी हजारों लड़कियां शिक्षा से वंचित है। हलांकि इतना जरूर है कि इनके शिक्षा के नाम पर शिक्षा विभाग के पदाधिकारी एवं स्वयं सेवी संस्था की चांदी कट रही है। अररिया जैसे शिक्षा के मामले में अति पिछड़े जिले में विशेष योजना चलाकर वैकल्पिक व नवाचारी केन्द्र खोले गए हैं। जो कागजों व फाइलों में ही सिमट कर रह गया है। जिले में दस से 14 वर्ष की कुल 1250 ऐसी छात्राएं हैं जो किसी विद्यालय में नामांकित नहीं है। उन केलिए 50 केन्द्र खोले गए। इस नवाचारी केन्द्र के संचालन की जिम्मेवारी सरकार ने रहमानी फाउंडेशन मुंगेर को नोडल एजेंसी के रूप में दिया है। प्रत्येक केन्द्र पर 25 अल्पसंख्यक छात्राओं को 11 माह तक इस केन्द्र पढ़ाना था। पढ़ाने के लिए चयनित स्वयं सेवकों को दो हजार रुपये प्रति माह मानदेय का प्रावधान था। दिलचस्प बात तो यह है कि रहमानी मकतब का सारा काम ऊपर ही ऊपर गुप्त रूप से बिचौलियों द्वारा कर लिया गया। इसके लिए किसी नियम कानून व प्रावधान को पालन नहीं किया गया। सब कुछ मनमाने तरीके से किए गए और अपने मनपसंद लोगों के लिए केन्द्र व स्वयं सेवकों का चयन किया गया।
जिले में रहमानी मकतब भी पूर्व में चला है अथवा वर्तमान में चल रहा है इसकी जानकारी आम अल्पसंख्यक व निर्धन लड़कियों को आज भी नहीं है। इस योजना के लिए सरकार ने ग्यारह माह के लिए बीस लाख की राशि सर्व शिक्षा को उपलब्ध करा दी थी। सर्वशिक्षा कार्यालय में वैकल्पिक व नवाचारी केन्द्र प्रभारी संजय कुमार ने बताया कि चूंकि केन्द्र संचालन की नोडल एजेंसी रहमानी फाउंडेशन मुंगेर को बनाया गया था। इसलिए केन्द्र को सुचारू रूप से पादर्शिता के साथ चलाना उनकी जिम्मेवारी है। कार्यक्रम शुरू होते ही रहमानी फाउंडेशन को अग्रिम स्वरूप नौ लाख रुपये भुगतान कर दिया गया था। छह माह बाद पुन: नौ लाख रुपये दिया गया, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि स्वयं सेवकों को अभी तक मात्र छह माह का ही मानदेय का भुगतान हो पाया है। शेष मानदेय के भुगतान क लिए स्वयं सेवक महिलाएं दर-दर भटक रही है। विदित हो कि रहमानी फाउंडेशन मुंगेर ने इस काम के लिए कार्यक्रम समन्वयक के रूप में मो. शकील को प्रतिनियुक्त किया हुआ है। जिले से लगभग छह माह से फरार है। स्वयं सेवकों ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि मो. शकील द्वारा पुन: मानदेय भुगतान क लिए दो-दो हजार रुपये मांगा गया था। कुछ स्वयं सेवकों ने ये राशि भी दे दी है। बावजूद इसके अभी भुगतान नहीं किया जाना शिक्षा माफियाओं की दादागिरी को उजागर करना है। जिले में जो पचास केन्द्र खोले गए थे उसमें अररिया में छह, जोकीहाट में सात, रानीगंज में आठ, फारबिसगंज में 14 व नरपतगंज में 15 केन्द्र हैं। वहीं शेष चार प्रखंडों में एक भी केन्द्र नहीं खोला गया। अगर शिक्षा से वंचित लड़कियों को शिक्षित करना है तो शिक्षा विभाग को ऐसे लोगों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई करनी होगी।

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