Friday, June 3, 2011

कहां तो तय था चिरागां हर घर के लिए ..


हिमालय से बह कर आने वाली नदियों की गोद में बसे अररिया जिले में बिजली उत्पादन की संभावना के बावजूद अंधेरे का ही राज चलता है। कम आपूर्ति, वितरण व्यवस्था की खामियां, सप्लाई में भेदभाव, नेतृत्व की कमजोरी..। प्रतीत यही होता है कि 'भोजन' थाली में परोसा है लेकिन हमारे हाथों में उसे उठा कर खाने की 'कूवत' नहीं है।
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना फ्लाप
कहां तो तय था चिरागां हर घर के लिए, पर यहां तो रोशनी मयस्सर नहीं शहर के लिए..। जिले के गांवों में बिजली की सच्चाई शायद इसी एक पंक्ति से बयां हो जाती है। गांवों को रोशन करने के लिए प्रारंभ की गई राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना फ्लाप हो गई है। लगभग छह साल पहले इस जिले के साढ़े सात सौ गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए आरजीजीवी योजना पूरे तामझाम के साथ शुरू की गई थी। इसके तहत हर घर को रोशन करने की योजना थी, पर यहां तो शहरों को भी रोशनी नहीं मिल रही।
कार्यपालक विद्युत अभियंता सीताराम सिंह कहते हैं कि अब तक उन्होंने 114 गांवों को टेक ओवर किया है। वहीं 186 गांवों में बिजलीकरण कार्य ठीकठाक नहीं रहने के कारण उन्हें एसपीएमएल (पीजीसीएल की एजेंसी) को यह कह कर बैक कर दिया गया है कि आप कार्य को ठीक करने के बाद ही उन्हें हैंडओवर करें।
जिले में पनबिजली उत्पादन की अपार संभावना
अररिया जिले में पनबिजली उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। जिले से होकर आधा दर्जन से अधिक बड़ी व मंझोली नदियां बहती हैं। जिनमें सालों भर पानी रहता है। इन पर चैक डैम बना कर न केवल बाढ़ की समस्या नियंत्रित हो सकती है बल्कि बिजली उत्पादन कार्य भी किया सकता है।
जिले के बथनाहा में दस मेगावाट क्षमता का एक लघु यूनिट लगाने की कार्रवाई चल भी रही है।
इस संबंध में राज्य सरकार की भी पहल सकारात्मक है। ऊर्जामंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव की मानें तो बथनाहा व डगमारा सहित कई अन्य जगहों पर लघु पनबिजली परियोजनाएं जल्द प्रारंभ कीे जाएंगी।
मांग के अनुरूप नहीं मिलती बिजली-
28 लाख की आबादी व तीन शहरी क्षेत्र वाले इस जिले में 29 मेगावाट बिजली की जरूरत है पर आपूर्ति होती है सिर्फ आठ मेगावाट की ही। लिहाजा गांवों की कौन कहे शहरों में भी अंधेरे का ही राज रहता है। बिजली की बदहाली से आजिज होकर जिलाधिकारी एम सरवणन ने ऊर्जा सचिव को पत्र भी लिखा है। वहीं, वितरण व्यवस्था में भी तमाम तरह की खामियां हैं। आपूर्ति नेटवर्क पूरी तरह खस्ताहाल बना है।
जरूरत 29 मेगावाट की मिलता है आठ
कार्यपालक विद्युत अभियंता सीताराम सिंह के अनुसार जिले में 29 मेगावाट बिजली की जरूरत है पर मिलती है केवल आठ मेगावाट, जिससे अधिकांश गांव व शहर अंधेरे में बने रहते हैं।
उनके मुताबिक जिले के छह पावर सब स्टेशनों की मांग क्षमता निम्न प्रकार से है
फारबिसगंज- 12 मेगावाट
अररिया- 8 मेगावाट
जोकीहाट- 3 मेगावाट
नरपतगंज-3 मेगावाट
रानीगंज-3 मेगावाट
एक दर्जन से अधिक उद्योग बंद
बिजली की बदहाली की वजह से जिले के एक दर्जन से अधिक लघु व मंझले उद्योग बंद हो गए हैं। इनमें अररिया का कोल्ड स्टोरेज, अररिया बस स्टैंड की काटी फैक्ट्री, कुसियारगांव की कूट फैक्ट्री, हड़ियाबाड़ा की डेफोडिल्स टैनरी, सिरसिया का क्रॉफ्टवेल पेपर्स के अलावा तकरीबन दस राइस मिलें शामिल हैं। आटा चक्की
व स्पेलर जैसी छोटी इकाइयां डीजल पर चलने लगी हैं, जिससे पिसाई व पेराई की दर बढ़ गई है।
बिजली की बदहाली का असर स्कूल व कालेज के छात्र छात्राओं के पठन पाठन पर भी पड़ा है।

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